संदर्भ:

वैज्ञानिकों ने अमीबा डिक्टिओस्टेलियम डिस्कोइडम का अध्ययन करके प्राकृतिक परोपकारिता (दूसरों की मदद करने का एक निस्वार्थ कार्य) संबंधी महत्वपूर्ण नई जानकारी प्राप्त की है।

पशुओं में परोपकारिता क्या है?

पशुओं में परोपकारिता उन व्यवहारों का उल्लेख करती है, जो उनके लिए नुकसानदेह हो सकती हैं, किन्तु दूसरों के लिए फायदेंमंद होते हैं, इसे अक्सर प्रजनन क्षमता के संदर्भ में देखा जाता है। यह आमतौर पर प्रकृति में मौजूद है तथा इसे निम्नलिखित में देखा जा सकता है:

  • श्रमिक मधुमक्खियाँ (Worker Honey Bees): ये अपना जीवन, प्रजनन किए बिना, रानी मक्खी और उसके बच्चों की देखभाल और भोजन की तलाश में लगाती हैं।
  • आगतांश मकड़ियाँ (Widow Spiders): मादा मकड़ी और संतान के पोषण हेतु नर मकड़ी स्वयं को निषेचित मादाओं के भोजन के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।
  • मीरकैट (Meerkat): ये प्रहरी के रूप में काम करते हैं तथा शिकारियों पर नज़र रखते हैं, जबकि समूह के अन्य सदस्य चारा ढूँढ़ते हैं, और यदि खतरा निकट होता है, तो यह समूह के अन्य सदस्य को सचेत करते हैं।

डिक्टियोस्टीलियम डिस्कोइड (Dictyostelium Discoideum) के बारे में

  • विवरण: यह जीवाणु (बैक्टीरिया) पर निर्भर रहने वाला स्वतंत्र जीवधारी श्रेणी का एक एककोशिकीय अमीबा है।
  • जीवन-चक्र: यह एककोशिकीय अमीबा से बहुकोशिकीय सितुआ (स्लग) और फिर फलकाय में परिवर्तित होता है।
  • चुनौती: जब भोजन कम होता है, तब अमीबा एक साथ मिलकर फलकाय अर्थात, फलने वाले शरीर धारण करते हैं। कुछ अमीबा डंठल के जैसी कोशिका के रूप में बन जाते हैं, जो बीजाणुओं (भविष्य की पीढ़ियों) को प्रकाश की ओर लाने के लिए खुद को नष्ट कर देते हैं।
    लगभग 20 प्रतिशत अमीबा निस्वार्थ भाव से डंठल बनाने के लिए खुद को नष्ट कर देते हैं। इसके बाद शेष 80 प्रतिशत नये प्राणी के रूप में विकसित जीवाणु (बीजाणु) बन जाते हैं।

स्वजन का चयन और परोपकारिता का रहस्य  

  • सामाजिक अमीबा डिक्टिओस्टेलियम डिस्कोइडम पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि यदि कोई जीन किसी व्यक्ति में परोपकारिता को बढ़ावा देता है, तो यह जीवित रिश्तेदारों के माध्यम से अगली पीढ़ी तक जीन को पहुँचाने में भी सहायता करता है।
  • सामान्यतः, इसकी क्रमागत विकास उन गुणों का पक्षधर होता है, जो किसी व्यक्ति की प्रजनन सफलता को बढ़ाते हैं। स्वजन का चयन सिद्धांत (Kin Selection Theory) इस बात की संभावित व्याख्या प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार से यह प्रतीत होता है कि निस्वार्थ कार्य, जैसे कि डिक्टीओस्टेलियम डिस्कोइडम में डंठल कोशिका बनना, जारी रहता है।
  • यह सिद्धांत इस बात को प्रस्तावित करता है कि व्यक्ति अपने करीबी रिश्तेदारों (जो समान जीन साझा करते हैं) की मदद करके अप्रत्यक्ष रूप से अपने जीन के अस्तित्व को सुनिश्चित कर सकते हैं। वे अपने रिश्तेदारों का समर्थन करके अपनी जीन को भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाने की संभावना को बढ़ाते हैं।

ग्रीनबीर्ड जीन (Greenbeard Genes) प्रस्थापित प्रकार का एक जीन है, जिसके दो प्रमुख कार्य हैं, जो है:

  • परोपकारी व्यवहार को बढ़ावा देना (जैसे, अमीबा में डंठल कोशिका बनना)।
  • अपनों की पहचान के लिए “टैग” के रूप में कार्य करना: ये जीन आनुवंशिक रूप से समान जीवों के बीच अपनों की पहचान और सहयोग को सक्षम बनाते हैं, साथ ही, अन्य इसी प्रकार के दूसरे जीन के द्वारा होने वाले शोषण को प्रतिबंधित करते हैं।

डिक्टियोस्टीलियम डिस्कोइड (Dictyostelium Discoideum) में ग्रीनबीर्ड जीन के साक्ष्य

tgrB1 और tgrC1 जीन: ये जीन ग्रीनबीर्ड जीन हो सकते हैं।

प्रोटीन बंधन: एक अमीबा का TgrB 1 प्रोटीन दूसरे के TgrC1 प्रोटीन से बंधन बनाता है। यह बंधन परोपकारी व्यवहार (डंठल कोशिका निर्माण) को प्रभावित करता है।

  • मजबूत बंधन: एक ही प्रजाति के tgr (टीजीआर) प्रोटीनों के बीच मजबूत बंधन स्वजनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • कमजोर बंधन: विभिन्न उपभेदों (स्ट्रेन) के tgr प्रोटीनों के बीच कमजोर बंधन सहयोग को कमजोर करता है।

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