संदर्भ:

हाल ही में, वर्तमान मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में भारत के आदिवासी लोगों के धार्मिक वर्गीकरण पर बहस हुई।

अन्य संबंधित जानकारी

  • कानून राज्य मंत्री ने कहा कि आदिवासियों को नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 में हिंदू धर्म को मानने वाले व्यक्तियों के रूप में शामिल किया गया है।
  • झारखंड, ओडिशा, राजस्थान और अन्य स्थानों पर आदिवासी आंदोलन के माध्यम से यह मांग कर रहे हैं कि उनके मूल धर्म सरना को मान्यता दी जाए (उनका तर्क है कि उनकी पूजा हिंदू धर्म से अलग है)।

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसरण में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 अधिनियमित किया गया। तत्पश्चात, वर्ष 1976 में इसमें संशोधन किया गया तथा इसका नाम बदलकर “नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955” कर दिया गया।
  • अधिनियम की धारा 3-7ए में निम्नलिखित को “अस्पृश्यता” के आधार पर किए गए अपराधों के रूप में परिभाषित किया गया है:
  • इस अधिनियम में “नागरिक अधिकार” से तात्पर्य संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा “अस्पृश्यता” के उन्मूलन के कारण किसी व्यक्ति को मिलने वाले किसी भी अधिकार से है।

अनुच्छेद 17

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 ने अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त कर दिया।
  • अनुच्छेद इस प्रकार है: –

अस्पृश्यता का उन्मूलन 

“अस्पृश्यता” को समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका अभ्यास निषिद्ध है। “अस्पृश्यता” से उत्पन्न किसी भी दिव्यांगता का प्रवर्तन कानून के अनुसार दंडनीय अपराध होगा।”

  • धारा 3 धार्मिक अक्षमताओं को लागू करने के लिए दंड:
  • क) किसी भी सार्वजनिक पूजा स्थल में प्रवेश करने से, जो उसी धर्म को मानने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए खुला है।
  • ख) किसी भी सार्वजनिक पूजा स्थल पर पूजा करने, प्रार्थना करने या कोई धार्मिक सेवा करने से।
  • उपरोक्त धारा का उल्लंघन करने पर कम से कम एक माह और अधिक से अधिक छह माह की अवधि के कारावास से दण्डनीय होगा तथा कम से कम एक सौ रूपये और अधिक से अधिक पांच सौ रूपये का जुर्माना भी लगाया जा सकेगा।
  • धारा 3 और धारा 4 के अनुसार बौद्ध, सिख या जैन धर्म को मानने वाले व्यक्ति अथवा वीरशैव, लिंगायत, आदिवासी, ब्रह्मो, प्रार्थना, आर्य समाज और स्वामीनारायण (सहजानंद स्वामी) संप्रदाय के अनुयायियों सहित हिंदू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति हिंदू माने जाएंगे।
  • अधिनियम की धारा 15ए(2)(iii) अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान करती है।

सरकारी पहल

  • अनुच्छेद 17 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कार्यान्वयन हेतु केंद्र प्रायोजित योजना के तहत केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। इन अधिनियमों के प्रावधान निम्न हैं: 
  • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति संरक्षण प्रकोष्ठ और विशेष पुलिस स्टेशनों का कामकाज और सुदृढ़ीकरण।
  • विशिष्ट विशेष न्यायालयों की स्थापना एवं कार्यप्रणाली।
  • अत्याचार पीड़ितों को राहत एवं पुनर्वास।
  • अंतर्जातीय विवाह हेतु नकद प्रोत्साहन।
  • जागरूकता सृजन।

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