संदर्भ :

भारत के तटीय क्षेत्र में प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) से लक्षद्वीप सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

प्रवाल भित्ति (Coral Reef)

  • प्रवाल भित्तियाँ पानी के नीचे की विशाल संरचनाएँ (कॉलोनी) होती हैं, जो  समुद्री अकशेरुकी (पॉलिप्स) के कंकालों से बनी हैं, जिन्हें प्रवाल कहा जाता है।
  • भारत में प्रवाल भित्तियाँ कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी, अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपसमूह सहित अनेक क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) 

  • प्रवाल विरंजन तब देखने को मिलता है जब कोरल चट्टानें अपना रंग खो देती हैं और जूजैंथिली के निष्कासन या मृत्यु के कारण सफेद हो जाती हैं।  जूजैंथिली  वह शैवाल है, जो प्रवालों (पॉलीप्स) को पोषक तत्व और जीवंत रंग प्रदान करता है।
  • जब प्रवाल जलवायु परिवर्तन, पानी के बढ़ते तापमान, प्रदूषण, प्रकाश के स्तर में परिवर्तन और अवसादन के कारण तनावग्रस्त हो जाते हैं, तब वे  जूजैंथिली को बाहर निकाल देते हैं, जिससे विरंजन की घटना देखने को मिलती है।

विरंजन का विस्तार 

  • वैज्ञानिकों ने 36 द्वीपों से मिलकर बने भारत के केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में गंभीर प्रवाल विरंजन की स्थिति उत्पन्न होने की पुष्टि की है।
  • वर्तमान में, देखी जा रही वैश्विक प्रवाल विरंजन घटना (GCBE4) अब तक की सबसे गंभीर स्थिति में पहुँच गई है, तथा इसने पिछली वैश्विक प्रवाल विरंजन घटना(GCBE3) को भी पीछे छोड़ दिया है।
  • अमेरिका में स्थित नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी, 2023 से वैश्विक स्तर पर 70.7 प्रतिशत से अधिक प्रवाल भित्तियों को विरंजन-स्तर के ताप का तनाव झेलना पड़ा है।

स्थानीय अवलोकन

  • लक्षद्वीप के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों ने बताया कि इस वर्ष विरंजन के कारण 84.6 प्रतिशत प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित हुई हैं।
  • यह वर्ष 1998, 2010 और 2020 की तुलना में सबसे गंभीर घटनाओं में से एक है।

प्रवाल भित्ति (Coral Reef)

  • प्रवाल भित्तियाँ पानी के नीचे की विशाल संरचनाएँ (कॉलोनी) होती हैं, जो  समुद्री अकशेरुकी (पॉलिप्स) के कंकालों से बनी हैं, जिन्हें प्रवाल कहा जाता है।
  • भारत में प्रवाल भित्तियाँ कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी, अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपसमूह सहित अनेक क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) 

  • प्रवाल विरंजन तब देखने को मिलता है जब कोरल चट्टानें अपना रंग खो देती हैं और जूजैंथिली के निष्कासन या मृत्यु के कारण सफेद हो जाती हैं।  जूजैंथिली  वह शैवाल है, जो प्रवालों (पॉलीप्स) को पोषक तत्व और जीवंत रंग प्रदान करता है।
  • जब प्रवाल जलवायु परिवर्तन, पानी के बढ़ते तापमान, प्रदूषण, प्रकाश के स्तर में परिवर्तन और अवसादन के कारण तनावग्रस्त हो जाते हैं, तब वे  जूजैंथिली को बाहर निकाल देते हैं, जिससे विरंजन की घटना देखने को मिलती है।

प्रवाल प्रजातियों पर प्रभाव

  • पोरीटेस सिलिंड्रिकल, पोरीटेस लोबाटा और मोंटीपोरा फोलियोसा जैसी प्रवाल प्रजातियों पर सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिला है।
  • यहाँ तक कि एक्रोपोरा डिजीटीफेरा और पोसिलोपोरा ग्रैंडिस जैसी लोचशील (प्रतिरोधक) प्रजातियों में भी विरंजन के लक्षण देखने को मिले है, जो वर्तमान घटना की गंभीरता को रेखांकित करता है।

प्रवाल भित्तियों की भूमिका

  • लक्षद्वीप में प्रवाल भित्तियाँ विविध समुद्री जीवन को बनाए रखने, तटरेखाओं को कटाव और तूफानों से बचाने, मत्स्यन के माध्यम से आजीविका प्रदान करने और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

प्रवाल भित्ति के स्थिति में सुधार 

  • हालाँकि मानसून के आगमन के साथ जल के तापमान में मामूली कमी से अस्थायी राहत मिली है, लेकिन इससे यह स्पष्ट हो गया है कि दीर्घावधि में प्रवाल की स्थिति में सुधार को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
  • निरंतर ठंडी परिस्थितियाँ और अतिरिक्त तनावो पूर्ण कारकों (जो तापमान बढ़ाते हैं) की अनुपस्थिति स्थायी स्तर पर उनकी बेहतर स्थिति के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के उपाय

  • समुद्री संरक्षित क्षेत्र
  • कोरल रीफ एलायंस (CORAL)
  • अंतरराष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
  • प्रवाल भित्ति का पुनर्स्थापन
  • अंतरराष्ट्रीय समझौते: पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2°C से नीचे, आदर्शतः 1.5°C तक सीमित रखना है। 

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