संदर्भ:

हाल ही में, मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिनों के भीतर 13 हाथियों के झुंड में से दस जंगली हाथियों की मौत हो गई, प्रारंभिक आकलन में इन मौतों को संभवतः “कोदो बाजरा” विषाक्तता से जोड़ा गया है।

अन्य संबंधित जानकारी

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) अनुसार  हाथियों की मौत “कोदो बाजरा से जुड़े माइकोटॉक्सिन” के कारण  हो सकती है।

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान 1968 में अस्तित्व में आया और 1993 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इसे आधिकारिक तौर पर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का नाम दिया गया।

  • यहां हाथियों की एक बड़ी आबादी है जो 2018 में छत्तीसगढ़ से पलायन कर गई थी।

कोदो बाजरा (पसपालम   स्क्रोबिकुलैटम ) के बारे में 

कोदरा और वरगु के नाम से भी जाना जाने वाला कोदो बाजरा भारत में कई जनजातीय और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का मुख्य भोजन है।

  • कोदो बाजरा से बनने वाले कुछ प्रसिद्ध व्यंजनों में इडली , डोसा, पापड़ , चकली, दलिया और रोटियां शामिल हैं।

बुवाई का मौसम: मानसून के आगमन के साथ बुवाई करना लाभदायक होता है। बुवाई का मौसम आमतौर पर विभिन्न राज्यों में जून के मध्य से जुलाई के अंत तक होता है।

जलवायु: यह  उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2,100 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है।

मृदा: यह अत्यंत खराब से लेकर अत्यंत उपजाऊ तक विभिन्न प्रकार की मृदा के प्रति  व्यापक अनुकूलन क्षमता रखता है तथा एक निश्चित मात्रा में क्षारीयता को सहन कर सकता है।

यह फसल भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और पश्चिम अफ्रीका में उगाई जाती है।

वर्ष 2020 में प्रकाशित एक शोध पत्र, ‘कोदो बाजरा की पोषण संबंधी, कार्यात्मक भूमिका और इसका प्रसंस्करण: एक समीक्षा’ के अनुसार , इस बाजरे की उत्पत्ति भारत में हुई है और मध्य प्रदेश इस फसल के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, इसके बाद गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों का स्थान आता है। 

शोधकर्ताओं का दावा है कि यह कोदो बाजरा ग्लूटेन-मुक्त है, पचाने में आसान है, एंटीऑक्सिडेंट का  प्रमुख  स्रोत है तथा   इसमें कैंसर-रोधी गुण हो सकते हैं। 

वर्ष 2019 के एक अध्ययन के अनुसार   कोदो  बाजरे के बीजों में मौजूद आहार फाइबर ग्लूकोज अवशोषण और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सकारात्मक रूप से प्रभावित करके मानव स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है।

कोदो बाजरा जहरीला क्यों होता है? 

  • वर्ष 2023 के शोध पत्र, ‘कोडुआ विषाक्तता में साइक्लोपियाज़ोनिक एसिड विषाक्तता का संभावित जोखिम’ के अनुसार, CPA (साइक्लोपियाज़ोनिक एसिड) कोदो बाजरा के बीजों से जुड़े प्रमुख माइकोटॉक्सिन में से एक है जो कोदो विषाक्तता का कारण बनता है।
  • कोदो विषाक्तता मुख्यतः तब होती है जब पके और कटे हुए कोदो के दाने वर्षा के संपर्क में आते हैं, जिससे फफूंद संक्रमण  हो जाता है और परिणामस्वरूप “जहरीला कोदो” बनता है, जिसे उत्तरी भारत में स्थानीय रूप से ” मातवना कोदो” या ” माटोना कोदो” कहा जाता है।
  • कोदो की विषाक्तता मुख्य रूप से तंत्रिका और हृदय तंत्र को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप उल्टी,  बेहोशी, तेज़ और छोटी नाड़ी, ठंडे हाथ-पैर, अंगों का झटकों के साथ हिलना और कंपन जैसी समस्याएं होती हैं।

कोदो विषाक्तता का उपचार 

  • शोधकर्ता कोदो विषाक्तता के उपचार  के लिए जैव नियंत्रण एजेंटों (हानिकारक कवकों से लड़ने वाले जीवों) का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।
  • गैर विषैले कवकीय प्रकारों के प्रयोग से माइकोटॉक्सिन का उत्पादन कम हो सकता है तथा फसलों को दीर्घकालिक सुरक्षा मिल सकती है।
  • इसके अलावा, किसानों को  माइकोटॉक्सिन के स्तर को कम करने के लिए छंटाई और वायुरोधी भंडारण जैसी अच्छी कृषि और कटाई के बाद की प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए। 

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