संदर्भ:
केंद्र सरकार ने कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा का मसौदा जारी किया है जिसका उद्देश्य पारदर्शी, प्रतिस्पर्धी और समावेशी कृषि विपणन पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
अन्य संबंधित जानकारी
- मसौदा नीति फैज़ अहमद किदवई की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति द्वारा तैयार की गई है जिसे केंद्र सरकार द्वारा जून 2024 में गठित किया गया था।
- इस नीति का उद्देश्य विविध बाजार पहुंच और बेहतर मूल्य प्राप्ति के साथ किसानों को सशक्त बनाना है ।
- किसान नेताओं और पंजाब सरकार ने इस नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि यह 2020 में पेश किए गए और विरोध के बाद 2021 में निरस्त किए गए विवादास्पद कृषि कानूनों की तरह है।
मसौदे के मुख्य बिन्दु
1. बाजार पहुंच :
- किसान पारंपरिक मंडियों (विनियमित बाजारों) से आगे बढ़कर निजी खरीदारों सहित विभिन्न मंचों पर और उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष रूप से अपनी उपज बेच सकते हैं।
- यह गोदामों और शीत भंडारण सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को प्रोत्साहित करता है।
- दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल ट्रेडिंग और ई-मार्केट मंच को बढ़ावा देता है।
2. सशक्त कृषि विपणन सुधार समिति:
- इसने GST पर राज्य वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की तर्ज पर राज्य कृषि विपणन मंत्रियों की अधिकार प्राप्त कृषि विपणन सुधार समिति के गठन का प्रस्ताव किया है, जिससे राज्यों को राज्य APMC अधिनियमों में सुधार प्रावधानों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।
- राज्य कृषि मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली और एकल शुल्क के माध्यम से कृषि उपज के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राज्यों के बीच आम सहमति बनाने की दिशा में कार्य करेगी।
3. कृषि व्यापार(एग्रीट्रेड) में सुगमता (EoDA):
- कृषि एवं किसान कल्याण विभाग राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सृजित करने हेतु “एग्रीट्रेड में सुगमता” को बढ़ावा देने के लिए एक अनुक्रमण तालिका विकसित करेगा तथा उसे नियमित रूप से अद्यतन करेगा।
4. मूल्य बीमा योजना:
- इसमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की आधार पर एक “मूल्य बीमा योजना” का प्रस्ताव किया गया है जिससे बुवाई के समय ही किसानों की आय सुनिश्चित हो सके।
मसौदा नीति से संबंधित चिंताएं/चुनौतियां
कई किसान यूनियनों ने चिंता जताई है कि केंद्र सरकार मसौदा प्रस्तावों में समानताओं का हवाला देते हुए निरस्त कृषि कानूनों के प्रावधानों को फिर से लागू करने की कोशिश कर रही है।
- मसौदे में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य अधिनियम के समान APMC मंडियों के बाहर उपज बेचने की स्वतंत्रता का प्रस्ताव है ।
- इसके अलावा मसौदा नीति में निजी निवेश और बुनियादी ढांचे के विकास पर बल दिया गया है जो दूसरे कृषि कानून, कृषक मूल्य आश्वासन समझौता अधिनियम के अनुरूप है।
मसौदा में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी का विशेष उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे किसानों में चिंताएं उत्पन्न हो गई हैं।
एक और महत्वपूर्ण मुद्दा, यह सुनिश्चित करना कि निजी निवेश और डिजिटल समाधान सीमांत किसानों के लिए सुलभ हों।
आगे की राह
- राज्य सहयोग को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय कृषि आवश्यकताओं और विविधताओं का सम्मान करते हुए सुधारों पर आम सहमति बनाने के लिए राज्य सरकारों और किसान प्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
- MSP की गारंटी: किसानों की आय को सुरक्षित करने के लिए MSP या वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- समावेशिता : बाजार में असमानताओं को रोकने के लिए सीमांत और छोटे किसानों के लिए निजी निवेश, बुनियादी ढांचे और डिजिटल ट्रेडिंग मंचों को सुलभ बनाने के लिए रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।
- इस प्रकार, इस मसौदे की सफलता अंततः किसानों की आशंकाओं को दूर करने की इसकी क्षमता पर निर्भर करेगी, विशेष रूप से मूल्य गारंटी और लाभों तक समान पहुंच के संबंध में।
तीन कृषि कानून
तीनों कृषि कानून सितंबर 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित किए गए थे। किसान यूनियनों के विरोध के बाद दिसंबर 2021 में कानूनों को निरस्त कर दिया गया था।
1. किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 : किसानों को अधिसूचित कृषि उपज बाजार समिति (APMC) मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति दी गई। इसका उद्देश्य किसानों को अधिक विकल्प और बेहतर मूल्य प्रदान करना था।
2. मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 2020 : अनुबंध खेती के लिए एक ढांचा प्रदान किया गया, जिससे किसानों को कृषि व्यवसाय फर्मों, प्रसंस्करणकर्ताओं, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ पूर्व-सहमत मूल्य पर भविष्य की कृषि उपज की बिक्री के लिए समझौते करने में सक्षम बनाया गया।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 : अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया, जिसका उद्देश्य इन वस्तुओं के उत्पादन, भंडारण और बिक्री को नियंत्रणमुक्त करना था।