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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ: हाल ही में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) के लिए भारत का पहला अनुसंधान एवं विकास रोडमैप जारी किया।

अन्य संबंधित जानकारी

  • इस रोडमैप को भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा लॉन्च किया गया था और यह CCUS प्रौद्योगिकी की प्रगति तथा परिनियोजन के लिए दिशा प्रदान करता है।
  • इसे कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) प्रौद्योगिकी के विकास और व्यावहारिक उपयोग के लिए आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) द्वारा इस रोडमैप को लॉन्च किया गया है।
  • इस रोडमैप का लक्ष्य कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) प्रौद्योगिकियों के उपयोग में तीव्रता लाना है, जिसके लिए सहयोग को बढ़ाया जाएगा और निवेश को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इन प्रयासों से भारत अपने कार्बन उत्सर्जन (कार्बन फुटप्रिंट) को सफलतापूर्वक घटा सकेगा और अपने अंतर्राष्ट्रीय जलवायु दायित्वों का दृढ़तापूर्वक निर्वहन कर सकेगा।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की योजना है कि निजी क्षेत्र के नेतृत्व में औद्योगिक वि-कार्बनीकरण  को बढ़ावा देने के लिए ₹1 लाख करोड़ की अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना के माध्यम से इस रोडमैप का कार्यान्वयन किया जाए।

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS)के बारे में

  • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) में आम तौर पर बिजली उत्पादन या औद्योगिक सुविधाओं जैसे बड़े स्रोतों से निकलने वाले CO2  को कैप्चर करना शामिल है। ये स्रोत ईंधन के रूप में जीवाश्म ईंधन या बायोमास का उपयोग करते हैं।
  • यदि कैप्चर की गई CO2 का उपयोग ऑन-साइट (उत्पादन स्थल पर) नहीं किया जाता है, तो इसे संपीड़ित (compressed) किया जाता है और पाइपलाइन, जहाज, रेल या ट्रक द्वारा विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाने के लिए, या गहन भूवैज्ञानिक संरचनाओं जैसे क्षरित तेल और गैस भंडार या लवणीकृत जलभृतों में इंजेक्ट करने के लिए पहुँचाया जाता है।
  • यदि कार्बन कैप्चर प्रक्रिया से प्राप्त CO2 का उपयोग उत्पादन स्थल पर नहीं किया जाता है, तो उसे संपीड़ित करके तरल अवस्था में लाया जाता है। इसके बाद, इसे पाइपलाइन, समुद्री जहाज़, रेल या ट्रकों द्वारा विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों, पृथ्वी की सतह के नीचे की गहरी भूवैज्ञानिक संरचनाओं (जैसे खाली हो चुके तेल और गैस भंडार या लवणीय जलभृत) में स्थायी रूप से इंजेक्ट करने के लिए पहुँचाया जाता है।

भारत के लिए CCUS का महत्त्व

  • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) तकनीक से देश के औद्योगिक क्षेत्रों के वि-कार्बनीकरण में परिवर्तनकारी बदलाव आने की अपेक्षा है। यह प्रयास भारत के 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन (‘नेट ज़ीरो’) को प्राप्त करने के राष्ट्रीय व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
  • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास (R&D) के लिए प्रोत्साहित करके CCUS तकनीक आयातित प्रौद्योगिकियों पर भारत की निर्भरता को कम करने में सहायक सिद्ध होगी।
  • इस रोडमैप की रणनीति वर्तमान CCUS प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग के लिए तैयार करना है, साथ ही यह भविष्य की अगली पीढ़ी के समाधानों को विकसित करने हेतु मौलिक और सफल विज्ञान को भी प्रोत्साहन देती है। इस प्रकार, यह रोडमैप अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
  • CCUS प्रौद्योगिकियों का समावेश चक्रीय कार्बन अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दे सकता है, जहाँ कैप्चर की गई कार्बन डाइऑक्साइड को सिंथेटिक ईंधन, उर्वरक, निर्माण सामग्री, और औद्योगिक गैसों जैसे मूल्य-वर्धित उत्पादों में पुन: उपयोग किया जाता है।
  • जब CCUS तकनीक को बायोमास ऊर्जा के साथ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (BECCS) या सीधे वायु से कार्बन कैप्चर (Direct Air Capture – DAC) जैसी तकनीकों के साथ एकीकृत किया जाता है, तो यह सक्रिय रूप से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड CO2 को हटा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप ननकारात्मक उत्सर्जन की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • यह रोडमैप भारत के कार्बन उत्सर्जन (कार्बन फुटप्रिंट) को कम करने में सहायक होगा और एक जिम्मेदार अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी के रूप में देश की स्थिति को सशक्त करेगा। यह प्रयास ‘विकसित भारत @2047’ के विज़न के अनुरूप, स्थायी और टिकाऊ भविष्य की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति है।

स्रोत :
PIB
Sansad
IEA
Construction world
DST

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