संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-2: सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन से संबंधित विषय।
संदर्भ: हाल ही में कर्नाटक मंत्रिमंडल ने सामाजिक वैमनस्य की रोकथाम और घृणास्पद भाषण और घृणा अपराधों के प्रसार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से घृणास्पद भाषण और घृणा अपराध (निवारण) विधेयक, 2025 को मंज़ूरी दी।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
- घृणास्पद भाषण (Hate Speech) की परिभाषा: इस विधेयक में घृणास्पद भाषण की व्यापक परिभाषा को अपनाया गया है। इसके अंतर्गत व्यक्तियों या समूहों को नुकसान पहुँचाने, वैमनस्य, शत्रुता, घृणा या दुर्भावना भड़काने के इरादे से बोले गए शब्द, लिखित सामग्री, संकेत, दृश्य चित्रण या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी शामिल हैं।
- संरक्षण का आधार: यह विधेयक किसी व्यक्ति को धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, यौन अभिविन्यास, जन्म स्थान या निवास स्थान, भाषा, दिव्यांगता और जनजाति जैसी पहचान के आधार पर भेदभावपूर्ण पूर्वाग्रहों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- अपराधों की सूची: घृणा अपराधों में घृणा को भड़काने वाले कंटेंट तैयार करना, उसे प्रकशित करना और उसका प्रचार-प्रसार करना अथवा ऐसे भाषण को बढ़ावा देना, प्रचारित करना, उकसाना, या दुष्प्रचारित करना शामिल है।
- दंड: प्रथम अपराध के लिए 1 से 7 वर्ष तक के कारावास के साथ ₹50,000 का जुर्माना अनिवार्य होगा। अपराध दोहराने की स्थिति में, दण्ड को बढ़ाकर 2 से 10 वर्ष तक का कारावास और ₹1,00,000 का जुर्माना कर दिया जाएगा। ये अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती होंगे तथा इनकी सुनवाई (विचारण) प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जाएगी।
- सामूहिक दायित्व: घृणास्पद भाषण या अपराधों के मामले में, संगठनों और उनके ज़िम्मेदार पदाधिकारियों पर सामूहिक उत्तरदायित्व लागू होगा। हालांकि, यदि वे यह प्रदर्शित कर सकें कि उन्हें अपराध की जानकारी नहीं थी अथवा उन्होंने उचित सावधानी बरती था, तो उन्हें छूट मिल सकती है।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर राज्य का प्राधिकार: यह विधेयक नामित राज्य अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वे सेवा प्रदाताओं और डिजिटल मध्यस्थों को ऑनलाइन घृणास्पद सामग्री को अवरुद्ध (block) करने या हटाने का निर्देश दें।
- छूट: यह सार्वजनिक हित में विज्ञान, साहित्य, कला, अध्ययन या सद्भावपूर्ण धार्मिक/विरासत उद्देश्यों को आगे बढ़ाने वाले कंटेंट को सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वे इस कानून के दायरे में नहीं आते है।
घृणास्पद भाषण के लिए वर्तमान ढाँचा
- संवैधानिक ढाँचा:
- अनुच्छेद 19(1)(a): यह सभी नागरिकों के लिए वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार को सुनिश्चित करता है, जो लोकतांत्रिक सहभागिता का आधार है।
- अनुच्छेद 19(2): यह राज्य को विशिष्ट परिस्थितियों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लागू करने का अधिकार देता है।
- विधिक/सांविधिक ढाँचा:
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023:
- धारा 196: सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए, धर्म, जाति, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता या असामंजस्य को बढ़ावा देने पर सजा का प्रावधान।
- धारा 197: उन बयानों पर ध्यान केंद्रित करना जो राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं, जैसे कि यह आरोप लगाना कि विशिष्ट समूह राष्ट्र के प्रति निष्ठावान नहीं हैं।
- धारा 299: ऐसे जानबूझकर किए गए और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों को दण्डनीय बनाता है, जिनका उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को आहत करना होता है। इससे जानबूझकर किए गए धार्मिक अपमान के विरुद्ध कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- धारा 300: इस प्रावधान में ऐसे शब्द, संकेत (हाव-भाव) या कार्य शामिल हैं, जिनका उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करना होता है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: चुनावों के दौरान यदि कोई उम्मीदवार धर्म, नस्ल, जाति या समुदाय को लेकर की गई टिप्पणियों के आधार पर घृणा को भड़काता है, तो इसे भ्रष्ट आचरण माना जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (2014): न्यायालय ने सीमांत समूहों को होने वाले गंभीर नुकसान को ध्यान में रखते हुए घृणास्पद भाषण के हानिकारक प्रभाव को स्वीकार किया। तदनुसार, न्यायालय ने संसद से इस विषय पर समग्र कानूनी ढाँचा तैयार करने को कहा और चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया कि वह सामाजिक वैमनस्य से सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु चुनावी अवधि के दौरान ऐसे भाषणों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करे।
- अमिश देवगन बनाम भारत संघ (2020): घृणास्पद भाषण को किसी व्यक्ति या समूह की पहचान (जैसे जाति, धर्म आदि) के आधार पर उनकी गरिमा पर हमला माना गया। इस परिभाषा के तहत, वैध आलोचना को संरक्षण दिया जाता है परन्तु समुदायों के अपमान और जानबूझकर किए गए निरादर की घोर निंदा की जाती है।
Source:
Indianexpress
Deccanherald
