संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने 8:1 के बहुमत से निर्णय दिया कि मादक शराब ‘ में औद्योगिक अल्कोहल भी शामिल है। इस निर्णय के बाद अब राज्यों को इसे विनियमित करने और इस पर कर लगाने की अनुमति मिल गई।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय के  मुख्य बिन्दु       

  • वर्ष 2007 में, यह मामला नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपा गया था। यह मामला उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (आईडीआर अधिनियम) की धारा 18जी के विशेषकर राज्य के औद्योगिक अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क को विनियमित और लागू करने की शक्ति से व्याख्या से संबंधित है। 
  • यह निर्णय  25 जुलाई को 8:1 बहुमत वाले एक अन्य निर्णय के बाद आया है, जिसमें राज्यों को अपनी भूमि से खनिजों के निष्कर्षण पर रॉयल्टी लगाने के अधिकार को यथावत  रखा गया था, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने उस मामले में भी असहमति व्यक्त की थी।

बहुमत का तर्क     

न्यायालय ने वर्ष 1990 के “मादक शराब ” को केवल पेय मद्य तक सीमित करने वाले निर्णय को खारिज करते हुए राज्यों को अपने विनियमों में औद्योगिक अल्कोहल को भी शामिल करने की अनुमति दे दी।   

न्यायालय ने इस बात पर बल  दिया कि सातवीं अनुसूची की शर्तों की व्यापक रूप से व्याख्या होनी चाहिए, जिसमें प्रविष्टि से संबंधित “आकस्मिक” और “सहायक” विषय भी शामिल हैं।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ के बहुमत से लिए  निर्णय में उल्लेख किया गया कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के तहत “मादक शराब ” की व्याख्या  व्यापक रूप से की जानी चाहिए, क्योंकि यह प्रविष्टि कच्चे माल से लेकर मादक शराब के सेवन तक आने वाले समस्त मामलों को नियंत्रित करती है। 

  • इस निर्णय में कहा गया है कि इस शब्द में मादक शराब का  उत्पादन, निर्माण, सेवन, परिवहन, खरीद और बिक्री सहित विभिन्न पहलु शामिल है। 

अधिकांश न्यायाधीशों के अनुसार  इसमें पारंपरिक रूप से मादक नहीं माने जाने वाले उन पेय पदार्थों को भी शामिल किया जा सकता है, जिनमें मादकता होते हैं। 

इस निर्णय में स्पष्ट किया गया कि “मादकता” का तात्पर्य केवल मादक का सेवन करना ही नहीं, बल्कि जहर देना भी हो सकता है।    

  • यह निर्णय इस बात को इंगित करता है कि इस प्रविष्टि का उद्देश्य स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाली किसी भी प्रकार के मद्य को शामिल करना है।    

असहमति के बिन्दु   

  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने तर्क दिया कि मुख्य कारक के रूप में उपभोग किये जाने वाले उत्पाद की प्रकृति के अनुरूप होनी चाहिए।
  • न्यायमूर्ति के अनुसार  औद्योगिक अल्कोहल का दुरुपयोग नशा पैदा करने वाले पेय बनाने के लिए किया जा सकता है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ‘राज्य सूची की प्रविष्टि 8’ में औद्योगिक अल्कोहल भी शामिल होना चाहिए।
  • न्यायमूर्ति का  मानना था कि राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अनुमति देने से इसका दुरुपयोग होने की संभावना है।
  • न्यायमूर्ति ने  औद्योगिक अधिनियम में राज्यों के लिए औद्योगिक अल्कोहल को नियंत्रित करने हेतु कोई रूपरेखा नहीं होने के साथ-साथ इस बात पर बल  दिया कि यह  उत्पाद संघ के नियंत्रण में रखना चाहिए। 

बहस का विषय 

 मुख्य प्रश्न यह था कि क्या उद्योग (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1951, औद्योगिक अल्कोहल के विषय पर संघ को पूर्ण विनियामक शक्ति प्रदान करता है।

इसका मूल प्रश्न यह था कि क्या औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने का अधिकार राज्यों के पास है या यह अधिकार केवल केंद्र के पास ही है।

  • दूसरे शब्दों में, क्या “मादक शराब ” में  “औद्योगिक शराब ” के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। 

इस विवाद का मूल कारण संविधान की सातवीं अनुसूची की दो प्रविष्टियाँ “अतिव्यापी” हैं, जो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच कानून बनाने की शक्तियों का विभाजन निर्धारित करती हैं।

मामले में सम्मिलित संवैधानिक और विधिक प्रावधान    

राज्य सूची (प्रविष्टि 8): यह राज्य सरकारों को मादक  मदिरा  के उत्पादन और बिक्री के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देती है।

संघ सूची (प्रविष्टि 52): यह संसद को सार्वजनिक हित के लिए महत्वपूर्ण उद्योगों संबंधी कानून बनाने का अधिकार देती है। 

समवर्ती सूची (प्रविष्टि 33): राज्य और केंद्र दोनों कुछ विषयों पर कानून बना सकते हैं, लेकिन राज्य के कानून केंद्र के कानूनों से टकरा नहीं कर सकते है।

उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA): इस अधिनियम में अल्कोहल और किण्वन उद्योगों के अन्य उत्पाद शामिल हैं, जो गैर-पेय (गैर-पीने योग्य) अल्कोहल से संबंधित हैं।

  • यह संसद द्वारा पारित कानून है और केंद्र के अनुसार, औद्योगिक अल्कोहल के मामले में यह “अधिग्रहण” करता है, तथा राज्य इस विषय को विनियमित नहीं कर सकते है।

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