संदर्भ  

एक नए अध्ययन में पहली बार किसी मानव के अलावा (जानवर) – सुमात्रा के एक ओरांगुटान, जिसका नाम राकस है, को औषधीय पौधे का प्रयोग कर अपने चेहरे के घाव का उपचार करते हुए देखा गया है।

अन्य संबंधित जानकारी 

  • हाल ही में, वैज्ञानिकों ने सुआक बालिंबिंग, सुमात्रा (इंडोनेशिया) में रहने वाले राकस नामक नर ओरंगुटान को अपने चेहरे के एक घाव का उपचार करने हेतु एक औषधीय पौधे का उपयोग करते हुए देखा था।
  • राकस ने अपने चेहरे के घाव का उपचार करने हेतु अकर कुनिंग पौधे (फाइब्रौरिया टिनक्टोरिया) की पत्तियों का इस्तेमाल किया।
  • इस प्रक्रिया में पत्तियों को चबाना, इससे निकलने वाले रस को घाव पर लगाना और फिर चबाई हुई पत्तियों से घाव को ढंकना शामिल था। इससे उसका घाव पाँच दिन में भर गया।
  • यह पौधा दर्द निवारक और ज्वरनाशक गुणों के लिए जाना जाता है तथा स्थानीय समुदायों द्वारा मलेरिया सहित कई बीमारियों के उपचार के लिए पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है।
  • अकर कुनिंग पौधे के रासायनिक यौगिकों में जीवाणुरोधी, सूजन-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट और घाव भरने की प्रक्रिया से संबंधित अन्य जैव सक्रिय गुण पाए जाते हैं।
  • हालाँकि गैर-मानव प्रजातियों में स्वयं ही अपना उपचार करनी की घटना सामान्य है। राकस का जैविक रूप से सक्रिय पदार्थ के जरिए घाव का बार-बार उपचार करना अभूतपूर्व है।
  • यह व्यवहार बताता है कि पौधों से घाव का उपचार ओरंगुटान (ऑरंगुटान) के व्यवहार में एक नया बदलाव हो सकता है।

ओरंगुटान के बारे में

  • IUCN स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)
  • वैज्ञानिक नाम: पोंगो (Pongo)

• पोंगो जीनस की निम्नलिखित तीन प्रजातियाँ होती हैं:

  • पोंगो पाइग्मियस (बोर्नियन ओरांगुटान)
  • पोंगो अबेली (सुमात्रा ओरंगुटान)
  • पोंगो तपानुलीएंसिस (तपनुली ओरंगुटान)
  • इसका पर्यावास बोर्नियो और सुमात्रा के वर्षावनों में हैं।
  • इनकी विशेषता इनके लाल-भूरे रंग के फर और लम्बी भुजाएँ हैं।
  • ये अत्यधिक बुद्धिमान और अपने दैनिक कार्यों में औजारों का उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं।
  • ये मुख्यतः फलभक्षी होते है, लेकिन पत्तियों, छालों और कीड़ों का भी सेवन करते है।
  • वनों की कटाई, अवैध शिकार और अवैध पालतू व्यापार के कारण इनको पर्यावास हानि का खतरा हैं।
  • आम चिंपैंजी, गोरिल्ला और बोनोबो के साथ ओरांगुटान महान वानरों की विद्यमान (जीवित अर्थात्, विलुप्त नहीं) प्रजातियों में से एक है।

अध्ययन का महत्व      

  • यह खोज जानवरों में अनुभूति/संज्ञान व्यवहार के प्रभावों को, विशेषकर गैर-मनुष्य प्रजातियों में स्व-चिकित्सा से संबंधित प्रथाओं को, रेखांकित करती है।
  • यह मनुष्य की चिकित्सा पद्धतियों की विकासवादी उद्भव के बारे में सवाल उठाता है।
  • यह जैव विविधता संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है, क्योंकि जानवरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधे संभावितः मनुष्य के स्वास्थ्य अनुसंधान को लाभ पहुँचा सकते हैं।

मानवों का संबंध 

  • घाव देखभाल प्रथाओं का सबसे प्राचीन मानव इतिहास 2200 ईसा पूर्व का है।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि घाव के उपचार की स्व-चिकित्सा केवल मानवों तक सीमित नहीं है, क्योंकि महान वानर भी परजीवी संक्रमण के उपचार के लिए विशिष्ट पौधों का सेवन करने हेतु जाने जाते हैं।
  • यह चिकित्सीय गुणों वाले पदार्थों को पहचानने और उसका उपयोग करने संबंधी एक संभावित सामान्य अंतर्निहित तंत्र को इंगित करता है।

Also Read :

एटा एक्वारिड उल्कापात

Shares: