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सामान्य अध्ययन-3: आईटी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टेक्नोलॉजी, जैव-टेक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मुद्दों के क्षेत्र में जागरूकता।
संदर्भ: हाल ही में, भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष खगोल विज्ञान वेधशाला, एस्ट्रोसैट ने एक दशक का परिचालन पूरा किया।
एस्ट्रोसैट
• यह भारत की पहली बहु-तरंगदैर्घ्य अंतरिक्ष वेधशाला है, जिसका उद्देश्य एक्स-रे, ऑप्टिकल और पराबैंगनी (UV) स्पेक्ट्रल बैंड्स में स्थित खगोलीय स्रोतों का एक साथ अध्ययन करना है।
• इसे वर्ष 2015 में पीएसएलवी-सी30 (PSLV-C30) के माध्यम से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
• एस्ट्रोसैट मिशन की न्यूनतम उपयोगी आयु 5 वर्ष अनुमानित की गई थी।
• उद्देश्य:
- न्यूट्रॉन तारों और ब्लैक होल्स वाले द्वैतीय तारकीय प्रणालियों (Binary Star Systems) में उच्च-ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना।
- न्यूट्रॉन तारों के चुंबकीय क्षेत्रों का अनुमान लगाना।
- तारों के उत्पति क्षेत्रों (Star Birth Regions) और हमारी आकाशगंगा से परे स्थित तारकीय प्रणालियों में हो रही उच्च-ऊर्जा गतिविधियों का अध्ययन करना।
- आकाश में नई और क्षणिक रूप से चमकीली एक्स-रे स्रोतों का पता लगाना।
- पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड का सीमित गहराई वाला सर्वेक्षण (Deep Field Survey) करना।
• एस्ट्रोसैट के पाँच पेलोड (उपकरण):
1. पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (UVIT): दृश्य (Visible), समीप-पराबैंगनी (Near-UV) और सुदूर-पराबैंगनी (Far-UV) प्रकाश का निरीक्षण करता है।
2. लार्ज एरिया एक्स-रे प्रपोर्शनल काउंटर (LAXPC): एक्स-रे द्वैतीय प्रणालियों और सक्रिय आकाशगंगाओं जैसे स्रोतों से आने वाले एक्स-रे में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।
3. सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप (SXT): 0.3 से 8 keV ऊर्जा सीमा में आने वाले एक्स-रे के समय आधारित परिवर्तन को मॉनिटर करता है।
4. कैडमियम-जिंक-टेल्यूराइड इमेजर (CZTI): 10 से 100 keV ऊर्जा सीमा में उच्च-ऊर्जा एक्स-रे का पता लगाता है।
5. स्कैनिंग स्काई मॉनिटर (SSM): आकाश में स्थित चमकीले और क्षणिक एक्स-रे स्रोतों की स्कैनिंग करता है।
एस्ट्रोसैट की प्रमुख उपलब्धियाँ
• अंतरराष्ट्रीय सहयोग: एस्ट्रोसैट के पास 57 देशों के लगभग 3400 पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं — जिनमें अमेरिका से लेकर अफगानिस्तान और अंगोला जैसे देश भी शामिल हैं। यह भारत के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है।
• भारत में अनुसंधान: एस्ट्रोसैट ने भारत में 132 विश्वविद्यालयों में खगोल भौतिकी (Astrophysics) शोध को शामिल कर अंतरिक्ष विज्ञान को नई दिशा दी है। इसके लगभग आधे उपयोगकर्ता भारतीय वैज्ञानिक और विद्यार्थी हैं, जो भारत में खगोलशास्त्र की नई पीढ़ी के विकास में योगदान दे रहे हैं।
• अब तक के सबसे दूरस्थ पिंड: एस्ट्रोसैट ने 9.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक आकाशगंगा से एक्स्ट्रीम-यूवी (Extreme-UV) प्रकाश का पता लगाया। यह खोज ब्रह्मांड के प्रारंभिक इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
• गामा-किरण विस्फोट (Gamma-Ray Bursts): मिशन ने अपना 600वाँ गामा-किरण विस्फोट (GRB) दर्ज किया — जो इसके कैडमियम-जिंक-टेल्यूराइड इमेजर (CZTI) की दक्षता और संवेदनशीलता को दर्शाता है।
• दुर्लभ तारे: एस्ट्रोसैट ने हमारी आकाशगंगा (Milky Way) में कुछ असामान्य, गर्म और अत्यधिक पराबैंगनी (UV-bright) तारे पहचाने हैं — जिनमें से एक सूरज से 3000 गुना अधिक चमकीला है।
• तारकीय और ब्लैक होल अनुसंधान: वेधशाला ने तारों की चमक और परिवर्तनशीलता से संबंधित डेटा प्रदान किया है, जिससे तारकीय विकास (Stellar Evolution) और ब्लैक होल के साथ उनकी अंतःक्रियाओं को समझने में मदद मिली है।
• आकाशगंगा समूहों की गतिशीलता: एस्ट्रोसैट के निरीक्षणों से गैलेक्टिक क्लस्टर्स (Galaxy Clusters) की जटिल गतिशीलता और उनमें उपस्थित गर्म गैसों के वितरण संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है।