संदर्भ:

जैव प्रौद्योगिकी विभाग इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए एंजाइम-निर्माण सुविधाओं के गठन पर विचार कर रहा है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • भारत सरकार ने हाल ही में देश में जैव प्रौद्योगिकी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बायोई3 नीति (BioE3 Policy) पेश की है।
  • बायोई3 नीति का उद्देश्य जैव-प्रौद्योगिकी-विकसित फीडस्टॉक और उत्प्रेरक का उत्पादन करने हेतु ‘जैव-फाउंड्री’ स्थापित करना है, जो विभिन्न जैव-प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोगों की सहायता करेगा।
  • इस पहल के भाग के रूप में ऐसा पहला संयंत्र हरियाणा के मानेसर में स्थापित किया जा सकता है तथा यह संभवतः मथुरा (उत्तर प्रदेश), भटिंडा (पंजाब) में प्रस्तावित 2जी जैव-इथेनॉल संयंत्रों तथा पानीपत में मौजूदा संयंत्र के लिए आपूर्तिकर्ता होगा।
  • इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) द्वारा विकसित एंजाइमों ने इथेनॉल उत्पादन परीक्षणों में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।

इथेनॉल किण्वन में एंजाइमों की भूमिका

  • पहली पीढ़ी का इथेनॉल उत्पादन: अल्फा-एमाइलेज और ग्लूकोएमाइलेज जैसे एंजाइम अनाज से स्टार्च को किण्वनीय शर्करा में परिवर्तित करते हैं, साथ ही उपज बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रोटीज़ का उपयोग किया जाता है।
  • दूसरी पीढ़ी का इथेनॉल उत्पादन: इसमें पौधों के अपशिष्ट और लकड़ी के बायोमास का उपयोग किया जाता है; सेल्युलेस, पेक्टिनेज और हेमीसेल्यूलेज जैसे एंजाइम पौधों की सामग्री को किण्वनीय ग्लूकोज में तोड़ देते हैं।
  • तीसरी पीढ़ी का इथेनॉल उत्पादन: समुद्री शैवाल आधारित इथेनॉल के लिए एंजाइम, जिसमें अनुकूलित सेल्युलेस और एमाइलेज शामिल हैं, जटिल समुद्री शैवाल पॉलीसेकेराइड को किण्वनीय शर्करा में परिवर्तित करते हैं, जिससे ऊर्जा-गहन पूर्व शोधन से बचा जा सकता है।

इथेनॉल उत्पादन और सम्मिश्रण लक्ष्य

इथेनॉल की मांग और सम्मिश्रण लक्ष्य:

  • वर्ष 2025-26 तक भारत को सालाना लगभग 13.5 बिलियन लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी।
  • इसमें से लगभग 10.16 बिलियन लीटर का उपयोग ई20 ईंधन-मिश्रण आदेश को पूरा करने के लिए किया जाएगा, जिसका लक्ष्य पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण करना है।
  • वर्तमान सम्मिश्रण स्तर वर्ष 2021 के 8% से बढ़कर 13%-15% हो गया है।

क्षमता विस्तार:

  • गन्ना आधारित भट्टियों की क्षमता वर्ष 2021 में 426 करोड़ लीटर से बढ़कर वर्ष 2026 तक 760 करोड़ लीटर होने का अनुमान है।
  • इसी अवधि में अनाज आधारित भट्टियों की क्षमता 258 करोड़ लीटर से बढ़कर 740 करोड़ लीटर हो जाएगी।

दूसरी पीढ़ी (2G) जैव-इथेनॉल:

  • गन्ने के गुड़ के बजाय चावल के भूसे से उत्पादित 2जी जैव-इथेनॉल, पारंपरिक तरीकों का एक विकल्प प्रस्तुत करता है।
  • वर्ष 2022 में, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने चावल के पराली को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके पानीपत में 2जी इथेनॉल संयंत्र स्थापित किया।
  • संयंत्र की संभावित उत्पादन क्षमता 100,000 लीटर प्रतिदिन है, लेकिन यह 30% क्षमता पर संचालित होता है, तथा इसे प्रतिवर्ष 150,000-200,000 टन चावल के भूसे की आवश्यकता होती है।

एंजाइम विनिर्माण सुविधाओं का महत्व

  • 2जी जैव-इथेनॉल उत्पादन को सहायता: दूसरी पीढ़ी (2जी) जैव-इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं।
  • आयात पर निर्भरता कम करना: स्थानीय स्तर पर निर्मित एंजाइम्स आयातित एंजाइम्स की तुलना में उत्पादन लागत में दो-तिहाई की कटौती कर सकते हैं, जिससे भारत के जैव-इथेनॉल उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
  • पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ: चावल के ठूंठ जैसे कृषि अपशिष्ट को एंजाइमों की मदद से इथेनॉल में परिवर्तित करने से अवशेषों का प्रबंधन होता है, प्रदूषण कम होता है, सतत ईंधन उत्पादन को बढ़ावा मिलता है तथा अन्यथा बर्बाद होने वाले बायोमास का आर्थिक मान बढ़ता है, जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान मिलता है।
  • नवाचार और तकनीकी उन्नति: पेनिसिलियम फ्यूनोकुलोसम जैसे आनुवंशिक रूप से तैयार कवकों से उन्नत एंजाइमों का विकास, जैव-इथेनॉल क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नति का प्रतिनिधित्व करता है।

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चक्रवात असना

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