संदर्भ:
हाल ही में, पेट्रोल के साथ मिश्रित इथेनॉल उत्पादन के लिए प्राथमिक फीडस्टॉक के रूप में अनाज ने गन्ने को पीछे छोड़ दिया है।
मुख्य अंश
- चालू आपूर्ति वर्ष (नवंबर 2023-अक्टूबर 2024) में चीनी मिलों और डिस्टिलरी ने 30 जून तक तेल विपणन कंपनियों को 401 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति की।
- इस कुल उत्पादन में से 211 करोड़ लीटर (52.7%) इथेनॉल मक्का और खराब खाद्यान्नों से बना है, जबकि 190 करोड़ लीटर उत्पादन गन्ना आधारित फीडस्टॉक्स से हुआ है।
- पहली बार, अनाज अब भारत के इथेनॉल उत्पादन में 50% से अधिक का योगदान दिया, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 27.1%, वित्त वर्ष 2021-22 में 16.7%, वित्त वर्ष 2020-21 में 13.6%, वित्त वर्ष 2019-20 में 9.2%, वित्त वर्ष 2018-19 में 5% और वित्त वर्ष 2017-18 में शून्य था।
इथेनॉल क्या है?
- इथेनॉल (C2H5OH), जिसे अल्कोहल, एथिल अल्कोहल और खाद्यान्न अल्कोहल भी कहा जाता है, बीयर, वाइन या ब्रांडी जैसे मादक पेय पदार्थों में एक स्पष्ट, रंगहीन तरल घटक है।
- इथेनॉल पौधों के किण्वन का एक प्राकृतिक उपोत्पाद है और इसे एथिलीन के जलयोजन के माध्यम से उत्पादित किया जा सकता है।
- इथेनॉल, जो 99.9% शुद्ध अल्कोहल है, पेट्रोल के साथ मिश्रण के लिए उपयुक्त है।
इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP)
- इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करना, कार्बन उत्सर्जन कम करना और किसानों की आय को बढ़ाना है।
- इसे वर्ष 2003 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था।
सम्मिश्रण लक्ष्य: प्रारंभ में, कार्यक्रम ने 5% इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसे बाद में वर्ष 2022 तक बढ़ाकर 10% कर दिया गया।
- वर्तमान में, सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण करना है।
- वर्तमान सम्मिश्रण अनुपात: जून 2024 तक औसत सम्मिश्रण अनुपात 13% था, जो वर्ष 2022-23 में 12.1% और 2021-22 में 10% था।
इथेनॉल मिश्रण के लिए मक्का में वृद्धि की वजह
- प्रारंभिक उत्पादन: वर्ष 2017-18 तक, इथेनॉल का उत्पादन केवल सी-भारी राब (जो एक उपोत्पाद है जिसे चीनी मिलें आर्थिक रूप से चीनी में परिवर्तित नहीं कर सकती थीं) से किया जाता था।
- नीतिगत परिवर्तन: ईबीपी कार्यक्रम को वर्ष 2018-19 में बढ़ावा मिला, जब सरकार ने बी-भारी राब और समूचे गन्ने के रस/सिरप से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति दी, जिससे कम शक्कर उत्पादन की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की पेशकश की गई।
- मल्टी-फीडस्टॉक डिस्टिलरीज: कंपनियों ने गुड़ और अनाज दोनों का उपयोग करने में सक्षम डिस्टिलरीज स्थापित कीं, जो मौसमी उपलब्धता के आधार पर बदलती रहीं।
- सरकारी प्रतिबंध: सरकार ने एफसीआई चावल की आपूर्ति बंद कर दी (जुलाई 2023) और इथेनॉल के लिए गन्ने के रस और बी-भारी राब के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया (दिसंबर 2023)।
- प्रोत्साहन मूल्य निर्धारण: मक्का आधारित इथेनॉल के लिए एक्स-डिस्टिलरी मूल्य 71.86 रुपये प्रति लीटर है, जो अन्य फीडस्टॉक्स की तुलना में अधिक है।
कृषि और उद्योग पर प्रभाव
- किसानों पर सकारात्मक प्रभाव: मक्के की बढ़ती मांग से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के किसानों को लाभ मिलता है। इससे मक्के के लिए नया बाज़ार मिलता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
- पोल्ट्री और फीड उद्योग की चिंताएं: ऑल इंडिया पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन और कम्पाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने मक्का की कमी के बारे में चिंता जताई।
सरकार की प्रतिक्रिया: केंद्र ने 15% रियायती शुल्क पर 0.5 मिलियन टन मक्का के आयात की अनुमति दी है और मांग-आपूर्ति के अंतर को दूर करने के लिए आगे के आयात पर विचार कर रही है।
सरकार इथेनॉल उत्पादन के लिए शक्कर के उपयोग को हतोत्साहित क्यों कर रही है?
- सरकार इथेनॉल उत्पादन के लिए शक्कर (sugar) के उपयोग को हतोत्साहित कर रही है क्योंकि इसमें पानी की खपत अधिक होती है।
- मोंगाबे-इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, प्रति एकड़ 60-80 टन गन्ना उत्पादन के लिए महीने में दो बार औसतन नौ लाख लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को 1,320 मिलियन टन गन्ना, 19 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि और 348 बिलियन क्यूबिक मीटर अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी।
- इसी प्रकार, नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि गन्ने से सिर्फ एक लीटर इथेनॉल बनाने में कम से कम 2,860 लीटर पानी की खपत होती है।
आगे की राह
- प्राथमिक इथेनॉल फीडस्टॉक के रूप में अनाज की ओर बदलाव भारत की इथेनॉल उत्पादन रणनीति की गतिशील प्रकृति को उजागर करता है।
- जहां यह किसानों के लिए अवसर प्रस्तुत करता है, वहीं मक्का पर निर्भर अन्य उद्योगों के लिए चुनौतियां भी उत्पन्न करता है।
- सरकार को इथेनॉल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा दोनों को सहायता देने के लिए नियंत्रित आयात पर विचार करके, वैकल्पिक फीडस्टॉक्स को प्रोत्साहित करके और सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देकर इन हितों में संतुलन बनाना चाहिए।