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सामान्य अध्ययन 1: भारतीय संस्कृति – प्राचीन से आधुनिक काल तक की कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के प्रमुख पक्ष।
संदर्भ:
पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े धार्मिक समारोहों में से एक, कामाख्या मंदिर के वार्षिक अम्बुबाची मेले के लिए हजारों भक्त असम पहुंचे हैं।
अम्बुबाची मेला
- यह त्योहार मानसून के दौरान, आमतौर पर जून महीने में गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर में आयोजित होता है।
- अम्बुबाची की अवधि को देवी के वार्षिक ऋतुकाल (मासिक धर्म) की अवधि माना जाता है, और इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
- इस अवधि के अंत में, मंदिर के द्वार सांकेतिक रूप से खोले जाते हैं, और श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। इस वर्ष मंदिर 22 जून से 25 जून तक बंद रहेगा और 26 जून को फिर से खोला जाएगा।
- यह उत्सव प्रजनन क्षमता, मानसून की शुरुआत और पृथ्वी को उर्वर महिला के रूप में देखने की ऐतिहासिक सांस्कृतिक अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है। ‘अम्बुबाची’ शब्द का अर्थ ही है जल का प्रवाह।
- ऐसा माना जाता है कि मानसून की वर्षा के दौरान धरती माता के मासिक धर्म की रचनात्मक और पोषण शक्ति अंबुबाची के दौरान श्रद्धालुओं के लिए सुलभ हो जाती है।
- इस अवधि में खेती, बीजारोपण और अन्य कृषि कार्यों को पूरी तरह रोक दिया जाता है। देवी के रक्तचिह्न युक्त कपड़े के टुकड़े श्रद्धालुओं को वितरित किए जाते हैं, जिन्हें वे अपने घरों में सुरक्षा ताबीज के रूप में सुरक्षित रखते हैं।
कामाख्या मंदिर

- यह मंदिर गुवाहाटी के बाहरी इलाके में नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित है।
- यह वह स्थान है जहाँ देवी सती की योनि और गर्भाशय गिरे थे, जिससे यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
- कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति 8वीं–9वीं शताब्दी की है और यह म्लेच्छ राजवंश की तांत्रिक परंपराओं में निहित है।
- मंदिर आक्रमणों के दौरान नष्ट हो गया था, लेकिन 1500 के दशक में कोच राजवंश के संस्थापक विश्वसिंह द्वारा इसे पुनः खोजा गया।
मंदिर वास्तुकला:
- कामाख्या असम का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें पूर्ण विकसित भूमि योजना है, जिसमें पाँच कक्ष शामिल हैं।
- 1759 में अहोम राजा रजेश्वर सिंह द्वारा जोड़ा गया नाटमंडिर, पारंपरिक नृत्य और संगीत सभाओं के लिए हॉल के रूप में कार्य करता है।
- कामाख्या मंदिर परिसर के प्रत्येक कक्ष में विभिन्न स्थापत्य शैलियों का प्रदर्शन होता है।
- मुख्य मंदिर में संशोधित सरासेनिक गुम्बद है,
- जबकि अंतराल (antarala) में दो-स्तरीय छत है जो पारंपरिक झोपड़ियों जैसी दिखती है।
- भोगमंडिर, जिसे पंचरत्न भी कहा जाता है, मुख्य मंदिर के समान पाँच गुम्बदों से सुसज्जित है।
- नाटमंडिर की छत शंख के आकार की है, जिसमें एक अर्धगोलाकार अंत (apsidal end) होता है, जो असम में आम नमघर (प्रार्थना भवन) की शैली की याद दिलाता है।
- ये पाँच शिखर शैलियाँ असम में मंदिर शिखरों के लिए मॉडल बन गईं, और 1565 में कामाख्या का पुनरुद्धार देर-मध्यकालीन असम में एक नई स्थापत्य धारा की शुरुआत माना जाता है।