संदर्भ:
हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने उपासना स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता पर सवाल उठाने वाले मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ का गठन किया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- तीन न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन करेंगे।
- कई याचिकाकर्ताओं ने 1991 के कानून को हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को ऐतिहासिक आक्रमणकारियों द्वारा कथित रूप से अतिक्रमण किए गए उपासना स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए कानूनी सहायता लेने से रोकने का आरोप लगाया है।
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीयत उलमा- ए -हिंद जैसे मुस्लिम संगठनों ने इन याचिकाओं का विरोध किया है।
विशेष पीठ के गठन के कारण
- विशेष पीठ का गठन राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्थानीय अदालतों द्वारा मस्जिदों की उत्पत्ति और चरित्र को चुनौती देने वाले दीवानी मुकदमों में तीव्र न्यायिक हस्तक्षेप के बीच किया गया है।
- यह याचिका विशेष रूप से, ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में हिंदू याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर कई दीवानी मुकदमों के केंद्र में है , जिसमें मस्जिद के नीचे पहले एक हिंदू मंदिर की मौजूदगी और वहां उपासना करने के उनके अधिकार का दावा किया गया है।
मुस्लिम संगठनों का दृष्टिकोण
- मुस्लिम संगठनों के अनुसार उपासना स्थल अधिनियम, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता और संविधान की प्रस्तावना जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक रहा है ।
- वे इस कानून को संविधान के मूल ढांचे के कुछ हिस्सों की सुरक्षा के रूप में भी देखते हैं ।
- ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन के अनुसार मुगलकालीन शासकों का दावा और “कथित शिकायतें” केंद्रीय कानून की वैधता को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकती हैं।
न्यायालय के समक्ष प्रमुख मुद्दे
- क्या उपासना स्थल अधिनियम 1991 की धारा 2, 3 और 4 अनुच्छेद 14 और 15 तथा संविधान में समानता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं?
- क्या अधिनियम की धारा 2, 3 , 4 संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 में उल्लिखितधर्मनिरपेक्षता की मूल विशेषता का उल्लंघन करती हैं?
- क्या आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किये गए मंदिर हिंदू और इस्लामी पर्सनल लॉ के तहत मंदिर बने रहेंगे?
उपासना स्थल अधिनियम (1991)
- यह अधिनियम 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद उपजे सांप्रदायिक तनाव के बीच प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया था।
- यह कानून किसी उपासना स्थल पर पुनः दावा करने या उसके 15 अगस्त 1947 के धार्मिक स्वरूप को बदलने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है।
- धारा 2 में उपासना स्थल, प्रारंभ तिथि (11 जुलाई 2024) आदि की परिभाषाएं शामिल हैं।
- अधिनियम की धारा 3 किसी उपासना स्थल को पूर्णतः या आंशिक रूप से, एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे धार्मिक संप्रदाय में तथा एक ही धर्म के विभिन्न संप्रदायों में ‘रुपांतरण’ को अपराध घोषित करती है।
- अधिनियम की धारा 5 में राम जन्मभूमि विवाद को दायरे से बाहर रखा गया है, क्योंकि कानून लागू होने के समय यह मामला पहले से ही न्यायालय में विचाराधीन था।
- धारा 4 में यह घोषित किया गया है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही रहेगा जैसा वह उस दिन विद्यमान था।