संदर्भ 

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (अफस्पा-AFSPA) को छह महीने के लिए बढ़ा दिया है।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • इस अधिनियम से प्रभावित क्षेत्र वही रहेंगे, जिन्हें मार्च में जारी पिछली अधिसूचना में निर्दिष्ट किया गया था।   
  • नागालैंड में, अफस्पा (AFSPA) को 1 अक्टूबर से छह महीने के लिए 08 जिलों के साथ-साथ 05 अन्य जिलों के 21 पुलिस थानों में बढ़ाया जाएगा।
  • अरुणाचल प्रदेश में अफस्पा (AFSPA) को तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिलें के साथ-साथ असम सीमा से लगने वाले राज्य के नामसाई जिले के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विशिष्ट क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया है।

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (अफस्पा) के बारे में :

  • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 एक विवादास्पद अधिनियम है, जो भारतीय सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में विशेष शक्तियाँ देता है। 
  • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 की धारा 3 किसी भी राज्य के राज्यपाल या केंद्र सरकार को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर उस राज्य या राज्य के अंतर्गत आने वाले किसी क्षेत्र को “अशांत क्षेत्र” घोषित करने का अधिकार देती है।
  • अफस्पा सशस्त्र बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) को निर्दिष्ट “अशांत क्षेत्रों” में बिना वारंट के  संदेह  के आधार पर गिरफ्तार करने और तलाशी लेने जैसी कार्रवाई करने के साथ-साथ गोली चलाने का  अधिकार देता है ।  यह केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करता है।

अफस्पा (AFSPA) लागू क्षेत्र –

  • असम: यह राज्य के 4 जिले अर्थात्, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराइदेव और शिवसागर में लागू है।
  • नागालैंड: यह राज्य के 8 जिले के अलावा 5 अन्य जिलों के 21 पुलिस स्टेशन क्षेत्रों में लागू है।
  • अरुणाचल प्रदेश: यह राज्य के 3 जिले (तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग) के अलावा असम से सीमा साझा करने वाले नामसाई जिले के कुछ क्षेत्रों में लागू है।   
  • मणिपुर: यह इम्फाल घाटी के 07 जिलों के 19 पुलिस स्टेशनों के क्षेत्राधिकार को छोड़कर पूरे राज्य में लागू है। 
  • हाल के वर्षों में, त्रिपुरा (2015) और मेघालय (2018) से अफस्पा को हटा दिया गया था, तथा यह मिजोरम में भी लागू नहीं है।
  • जम्मू और कश्मीर: यह पूरे राज्य में एक अलग कानून यानी, सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1990 के रूप में लागू है।

अफस्पा के विपक्ष में तर्क :      

  • मानवाधिकार का उल्लंघन: इससे सत्ता के संभावित दुरुपयोग संबंधी चिंता है, जिसके कारण नागरिक हताहत, मनमानी गिरफ्तारियां और न्यायेतर हत्याएँ हो सकती हैं।
  • स्थानीय लोगों से अलगाव:  सैन्य शासन के अधीन होने की भावना स्थानीय लोगों में असंतोष पैदा कर सकती है। इसके अतिरिक्त, यह स्थानीय लोगों के साथ विश्वास बनाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • लोकतंत्र पर प्रभाव: यह लागू क्षेत्रों में नागरिक स्वतंत्रता को कम  कर सकती है, जो कि चिंता पैदा करती है।

अफस्पा के पक्ष  में तर्क

  • सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना: इस अधिनियम के समर्थकों का तर्क है कि यह सुरक्षा बलों को उग्रवाद से प्रभावी ढंग से निपटने और अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक आवश्यक कानून है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए आवश्यक माना जाता है।

आगे की राह  

  • सरकार को न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों को लागू करना चाहिए। इस समिति में सुझाव दिया गया था कि अफस्पा (AFSPA) को निरस्त किया जाना चाहिए और आतंकवाद से निपटने के लिए गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान को शामिल किया जाना चाहिए।
  • नगा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का अनुपालन करना चाहिए। इसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अफस्पा (AFSPA) की धारा 4(ए) के तहत घातक बल का प्रयोग केवल “कुछ विशेष परिस्थितियों” में ही किया जाना चाहिए।      

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