संदर्भ: 

हाल ही में, एक मुख्य विपक्षी दल के एक नेता ने अपने आम चुनाव के अभियान में आदिवासियों के लिए एक अलग सरना धार्मिक संहिता (कोड) लाने का वादा किया।

सरना धर्म के बारे में

  • सरना मत के अनुयायी प्रकृति पूजक होते हैं और स्वयं को एक विशिष्ट धार्मिक समूह से संबंधित मानते हैं।
  • “सरना” शब्द पवित्र उपवनों के लिए प्रयुक्त मुंडारी  शब्द से लिया गया है, जो सरना धार्मिक समारोहों का एक अभिन्न अंग हैं।
  • पवित्र उपवन, पवित्र वन स्थान होते हैं, जहाँ पेड़ों या वन्यजीवों को उनके धार्मिक मूल्य के कारण नुकसान पहुँचाना मना है।    
  • इस आस्था का पवित्र वस्तु’ (Holy Grail) “जल, जंगल और ज़मीन” है और इसके अनुयायी पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं और वन क्षेत्रों की रक्षा करने में भी विश्वास करते हैं।
  • सरना धर्म के अनुयायी न तो मूर्ति पूजा करते हैं और न ही वर्ण व्यवस्था, स्वर्ग-नरक आदि की अवधारणा को मानते हैं।   
  • सरना त्योहार लैंगिक-तटस्थ होने के साथ-साथ प्रकृति के साथ स्थायी और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देते हैं।
  • यह मौखिक परंपरा पर आधारित आस्था है, जो किसी लिखित धर्मग्रंथ के अभाव में ज्ञान और विश्वास मिथकों, कहानियों और अनुष्ठानों के माध्यम से प्रसारित होते हैं।
  • इसके लिए कोई संहिता नहीं था, लेकिन अनुमान है कि वर्ष 2011 की जनगणना में देश भर में 50 लाख मूल निवासियों ने अपने धर्म को “सरना” के रूप में पहचाना।
  • ये मुख्यतः ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के आदिवासी क्षेत्र वाले राज्यों में पाए जाते हैं।

अलग संहिता की माँग     

  • ये लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कुछ लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं – यह “उनकी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक पहचान की रक्षा हेतु” एक अलग संहिता की माँग के प्रमुख कारकों में से एक है।
  • अपनी अक्षुण्ण संस्कृति, रीति-रिवाजों और पहचान की रक्षा के लिए संवैधानिक मान्यता के लिए उनका निरंतर विरोध भारतीय संविधान में उनके लिए एक अलग धार्मिक संहिता की कमी से प्रेरित है।
  • वर्ष 1871 से वर्ष 1951 के बीच आदिवासियों के लिए अलग संहिता थी, लेकिन 1961-62 में इसमें बदलाव किया गया।

इस संबंध में उठाए गए कदम     

  • हाल के दिनों में झारखंड (2020) और पश्चिम बंगाल (2023) राज्यों ने आदिवासियों के लिए एक अलग ‘सरना’ संहिता के प्रावधान के लिए अपने-अपने विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए हैं।राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी सिफारिश की है कि सरना धर्म को भारतीय जनगणना के तहत धर्म संहिता में एक स्वतंत्र श्रेणी में शामिल किया जाए।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी सिफारिश की है कि सरना धर्म को भारतीय जनगणना के तहत धर्म संहिता में एक स्वतंत्र श्रेणी में शामिल किया जाए।

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