संदर्भ :

बांग्लादेश में आध्‍यात्मिक संत और मानवतावादी कवि फकीर लालन शाह की 250 वीं जयंती मनाई गई।

अन्य संबंधित जानकारी

  • इस महत्वपूर्ण अवसर के उपलक्ष्य में, बांग्लादेश के शेरपुर में भारत-बांग्ला संगीत पर आधारित तीन दिवसीय संगीत महोत्सव का आयोजन किया गया।
  • यह कार्यक्रम बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग और बांग्लादेश के सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय के सहयोग से आयोजित किया गया है ।

फकीर लालन शाह (1774-1890)

  • फकीर लालन शाह, जिन्हें लालन शाह, लालन फकीर या महात्मा लालन के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रमुख बंगाली दार्शनिक, बाउल संत, आध्यात्मिक, गीतकार, समाज सुधारक और विचारक थे।
  • उन्होंने किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी तथा वे गरीब किसान वर्ग से संबंधित थे।
  • उन्हें बाउल परंपरा के उपदेशक, बाउल गीतों के रचयिता और गायक के रूप में जाना जाता था।
  • ललन ने सिराज सान्याई (Siraj Sanyi) के अतिरिक्त बाउल सिद्धांत की शुरुआत की और खुद को कठोर तपस्या को समर्पित कर दिया।
  • उन्होंने लगभग ढाई हजार (2500) भक्ति गीतों की रचना की, जो सभी सरल किन्तु गहन भाषा में लिखे गए थे।

बाउल परंपरा के बारे में

  • बाउल भारत के बांग्लादेश के ग्रामीण क्षेत्रों और पश्चिम बंगाल में रहने वाले आध्यात्मिक कलाकार हैं।
  • बाउल या तो एक गाँव के पास रहते हैं या एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते हैं तथा एकतारा, लुटे दोतारा (lute dotara), एक सरल एक तार वाला वाद्ययंत्र और डुबकी नामक ड्रम की संगत में गायन करके अपनी आजीविका चलाते हैं।
  • बाउल एक अपरंपरागत भक्ति परंपरा से संबंधित हैं, जो संगीत और नृत्य के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक इच्छा व्यक्त करने वाले हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, बंगाली, वैष्णववाद और सूफी इस्लाम से प्रभावित हैं।
  • बाउल न तो किसी संगठित धर्म से पहचान रखते हैं और न ही वर्ण-व्यवस्था, विशेष देवताओं, मंदिरों या पवित्र स्थानों को मानते है।
  • वर्ष 2008 में, बाउल गीतों को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था।   
  • उनके गीत मानव जीवन, मानवतावाद और गैर-सांप्रदायिक दृष्टिकोण के विषयों को संबोधित करते हैं, जिससे वे महत्वपूर्ण और स्थायी बन जाते हैं।

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