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सामान्य अध्ययन-1: भारतीय संस्कृति; भक्ति और सूफी परम्पराएँ।
संदर्भ: हाल ही में, सिख समुदाय द्वारा सिख धर्म के दसवें और अंतिम मानव गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की 359वीं जयंती (प्रकाश पर्व) मनाई गई।
श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के बारे में

- गुरु गोबिंद सिंह जयंती, जिसे प्रकाश उत्सव के रूप में भी जाना जाता है, प्रतिवर्ष नानकशाही कैलेंडर (चंद्र कैलेंडर) के आधार पर मनाई जाती है। यह पर्व उनके नेतृत्व और सिख पहचान पर उनके प्रभाव के साथ-साथ समानता, न्याय और सामुदायिक सेवा जैसे सिद्धांतों के प्रति उनके योगदान का स्मरण कराता है।
- उनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर जी (सिखों के नौवें गुरु) और माता का नाम गुजरी जी था। जन्म के समय उनका नाम गोबिंद राय रखा गया था।
- गुरु तेग बहादुर जी (1621-1675) सिख धर्म के दस मानवीय गुरुओं में से नौवें गुरु थे।
- वे एक कुशल कवि, दार्शनिक और आध्यात्मिक नेता थे।
- 1699 में बैसाखी के अवसर पर, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की नींव रखी। उन्होंने खालसा के पहले सदस्यों के रूप में ‘पंज प्यारे’ (पांच प्यारे) की संस्था स्थापित की ।
- उनकी शिक्षाओं ने अनगिनत लोगों के विचारों और जीवन अत्यधिक प्रभावित किया। उन्हें पाँच ‘ककार‘ (5 Ks) की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है, जो विश्वास के वे पाँच प्रतीक हैं जिनका पालन हर सिख करता है:
- केश: बिना कटे बाल
- कंघा: लकड़ी की कंघी
- कड़ा: कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का कंगन
- कृपाण: एक छोटी तलवार
- कछैरा: सूती जांघिया (विशेष अंतःवस्त्र)
- दसम ग्रंथ, गुरु गोबिंद सिंह जी की काव्य रचनाओं का संग्रह है। इसमें ब्रज, हिंदी, फारसी और पंजाबी भाषा में लिखी गई विभिन्न प्रकार की रचनाएँ जैसे-भजन, दार्शनिक लेख, कथात्मक कविताएँ और पौराणिक विषय समाहित हैं।
- 1704-1705 के दौरान, उनके चारों पुत्रों का निधन हो गया ।
- साहिबजादा अजीत सिंह (17 वर्ष) और साहिबजादा जुझार सिंह (14 वर्ष) ने 1704 के चमकौर के युद्ध में असाधारण वीरता दिखाते हुए शहादत प्राप्त की।
- साहिबजादा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह (6 वर्ष) 1705 में सरहिंद में शहीद हुए ।
- वीर बाल दिवस प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह की वीरता और महान बलिदान के सम्मान में राष्ट्रीय स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- उन्होंने पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के शाश्वत और स्थायी गुरु के रूप में घोषित किया।
- गुरु ने सिख पुरुषों को “सिंह” (शेर) और महिलाओं को “कौर” (राजकुमारी) की उपाधि प्रदान की।
- मुगल अत्याचार के खिलाफ संघर्ष और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए, हत्या की साजिश के तहत 7 अक्टूबर, 1708 को महाराष्ट्र के नांदेड़ में उनका निधन हो गया।
Source:
Indianexpress
Sikhs
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