संदर्भ: 

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जीवाणु रोगजनक की प्राथमिकता सूची (Bacterial Pathogens Priority List-BPPL)  को अपडेट (अद्यतन) किया है।

जीवाणु रोगजनक की प्राथमिकता सूची (Bacterial Pathogens Priority List-BPPL):

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नए प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक्स) की आवश्यकता की तात्कालिकता के आधार पर रोगजनकों को प्राथमिकता देता है।

  • यह प्राथमिकता निर्धारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए अनुसंधान और विकास संबंधी प्रयासों को निर्देशित करने वाला एक महत्वपूर्ण साधन है।

यह अद्यतन में विश्व स्वास्थ्य संगठन जीवाणु रोगजनक की प्राथमिकता सूची में 15 रोगाणुरोधी प्रतिरोधी जीवाणु परिवारों को गंभीर, उच्च और मध्यम प्राथमिकता स्तरों में वर्गीकृत किया गया है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध AMR) 

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) वह स्थिति है, जो तब उत्पन्न देखने को मिलता है जब जीवाणु, विषाणु, कवक और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं तथा उनपर दवाओं का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।
  • इससे मरीज के बीमार बनाने के अतिरिक्त, रोग संचरण, बीमारी और मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • रोगाणुरोधी दवाओं का दुरुपयोग और अत्यधिक प्रयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रमुख कारण हैं।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव 

  • मृत्यु दर और रुग्णता में बढ़ोतरी: रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण संक्रमण का उपचार करना कठिन हो जाता है, जिससे बीमारी की अवधि, जटिलताएँ और यहाँ तक कि मृत्यु की दर भी बढ़ सकती है।
  • आधुनिक चिकित्सा पद्धति को कमजोर करना: कीमोथेरेपी और सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी पुरानी बीमारियों के उपचार हेतु एंटीबायोटिक्स और एंटीमाइक्रोबियल्स सर्जरी की आवश्यकता होती हैं।
  • आर्थिक बोझ: रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है, स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है, तथा रोग के कारण उत्पादकता में कमी आती है।
  • वैश्विक खतरा: रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक वैश्विक समस्या है, जो आय स्तर की परवाह किए बिना सभी देशों को प्रभावित करती है। हालाँकि, निम्न और मध्यम आय वाले देश इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • वर्ष 2017 में पहली बार जीवाणु रोगजनक की प्राथमिकता सूची के जारी के बाद से, रोगाणुरोधी प्रतिरोध का दर बढ़ा ही है, जिससे कई आधुनिक रोगाणुरोधी दवाओं की प्रभावकारिता प्रभावित हुई है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन रोगाणुरोधी प्रतिरोध की समस्या का समाधान करने और मौजूदा रोगाणुरोधी दवाओं की प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिए रणनीतिक निवेश और हस्तक्षेप के महत्व पर जोर देता है।
  • इन जीवाणुओं को तीन प्राथमिकता श्रेणियों में वर्गीकृत अर्थात, गंभीर, उच्च और मध्यम किया गया है।

गंभीर प्राथमिकता वाले रोगजनक   

  • ये सबसे अधिक चिंताजनक रोगाणु हैं, क्योंकि ये कई प्रकार के रोगाणुरोधी दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं , जिसके कारण इनका उपचार करना बेहद कठिन होता है।
  • वे अस्पतालों, नर्सिंग होमों और उन लोगों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं, जिन्हें वेंटिलेटर और कैथेटर जैसे उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण: एसिनेटोबैक्टर, स्यूडोमोनास और विभिन्न एंटरोबैक्टीरियासी (क्लेबसिएला, ई. कोलाई, सेराटिया (Serratia) और प्रोटियस सहित)। ये रक्तप्रवाह संक्रमण और निमोनिया जैसे गंभीर और अक्सर घातक संक्रमण पैदा कर सकते हैं।

उच्च प्राथमिकता वाले रोगजनक

  • ये रोगाणु रोगाणुरोधी (एंटीबायोटिक) दवाओं के प्रति भी तेजी से प्रतिरोधी होते जा रहे हैं, लेकिन वे गभीर श्रेणी के रोगाणुओं जितने गंभीर नहीं हैं।
  • वे विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा करते हैं, जिनमें कुछ सामान्य बीमारियाँ भी शामिल हैं।
  • उदाहरण: साल्मोनेला टाइफी (फ्लोरोक्विनोलोन प्रतिरोधी), शिगेला प्रजाति (फ्लोरोक्विनोलोन प्रतिरोधी), एंटरोकोकस फेसियम (वैनकोमाइसिन प्रतिरोधी), और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा (कार्बापेनेम प्रतिरोधी)।

मध्यम प्राथमिकता वाले रोगजनक

  • ये रोगाणु उच्च श्रेणी के रोगाणुओं की तुलना में रोगाणुरोधी दवाओं के प्रति कम प्रतिरोधी होते हैं।
  • हालाँकि, वे अभी भी चिंता का विषय हैं, क्योंकि वे गंभीर संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
  • इस सूची में शामिल विशिष्ट रोगाणु सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, परंतु इनमें संभवतः कुछ ऐसे बैक्टीरियाँ शामिल हैं, जो मूत्र मार्ग के संक्रमण और निमोनिया जैसे सामान्य संक्रमणों का कारण बनते हैं।

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