संदर्भ:

हाल ही में, रूस और चीन के राष्ट्रपतियों ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता केंद्र ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल (Great Hall of the People) में मुलाकात की।

खबर से संबंधी अन्य जानकारी:

  • दोनों नेताओं ने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगाँठ  के उपलक्ष्य में आयोजित एक संगीत समारोह में भी भाग लिया।
  • रूस के राष्ट्रपति को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर देकर स्वागत समारोह भी दिया गया।
  • रूसी राष्ट्रपति की यह दो दिवसीय चीन यात्रा यूक्रेन में युद्ध पर रूस के महत्वपूर्ण प्रभाव के समय में हो रही है।

चीन और रूस के संबंधों का शुरुआत:

  • चीन और सोवियत संघ के बीच संबंधों की शुरुआत उतार-चढ़ाव भरी रही।
  • माओत्से तुंग {Mao Zedong} (वर्ष 1949 से वर्ष 1976 तक चीनी के प्रीमियर) को वर्ष 1949 में अपने समकक्ष जोसेफ स्टालिन (वर्ष 1924 से वर्ष 1953 तक) से मिलने के लिए मास्को की यात्रा के दौरान देरी और असुविधा हुई थी।
  • दोनों देश पूरे शीत युद्ध के दौरान एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे तथा वैश्विक कम्युनिस्ट आंदोलन पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
  • दोनों देशों ने वर्ष 1969 में सीमा को लेकर एक छोटा-सा युद्ध भी लड़ा।
  • वर्ष 1976 में माओ की मृत्यु के बाद संबंधों में सुधार हुआ, लेकिन वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक संबंध यथास्थित पर बने रहे।
  • 1990 के दशक से, सहयोग को औपचारिक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण संधि (जैसे कि अच्छे पड़ोसी और मैत्रीपूर्ण सहयोग की संधि (2001)) की गई।
  • शीत युद्ध के बाद के समय में, आर्थिक संबंध महत्वपूर्ण हो गए। चीन अब रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और शीर्ष एशियाई निवेशक है।
  • चीन रूस को कच्चे माल के स्रोत और अपने माल के लिए एक मूल्यवान बाजार के रूप में देखता है।
  • वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस के प्रति पश्चिमी देशों की शत्रुता और बाद में यूक्रेन संघर्ष ने मास्को को बीजिंग के और करीब ला दिया।   

यूक्रेन युद्ध के दौरान चीन और रूस के संबंध :

चीन और रूस ने वर्ष 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने से ठीक पहले एक मजबूत साझेदारी बनाई थी। वर्तमान समय में, रूस यूक्रेन के महत्वपूर्ण हिस्सों को नियंत्रित करता है।

पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका, रूस के युद्ध के प्रयासों में चीन की भूमिका को लेकर चिंतित है।

अमेरिक के अधिकारियों ने चीन द्वारा रूस की सेना को मदद करने वाली मिसाइलों, टैंकों और ट्रकों जैसी ‘दोहरे उपयोग वाली तकनीकी वस्तुओं’ की आपूर्ति  को रेखांकित किया है।

  • दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं में वे वस्तुएँ, सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी शामिल हैं, जिनका उपयोग नागरिक और सैन्य दोनों अनुप्रयोगों हेतु किया जा सकता है।
  • चीन से रूस द्वारा उपकरणों और चिपों का आयात काफी तेजी से बढ़ा है।
  • हालाँकि, अपनी हालिया यूरोप यात्रा में चीन ने रूस को हथियार न बेचने तथा सैन्य-संबंधी वस्तुओं के प्रवाह को नियंत्रित करने का वादा किया था।

रूस के राष्ट्रपति की हाल की चीन यात्रा के दौरान, चीन ने अपने घनिष्ठ संबंधों पर पुनः जोर दिया तथा यूक्रेन युद्ध का राजनीतिक समझौते से समाधान करने  पर चर्चा की।

चीन और रूस के बीच के संबंधों के प्रगाढ़ होने पर भारत की चिंताएँ 

भारत का मानना है कि पश्चिमी देशों की कार्यवाहियों ने रूस को चीन के साथ मजबूत साझेदारी की ओर अग्रसर किया है ।

रूस और चीन के बीच के रक्षा व्यापार भारत के लिए कई बड़े चुनौतियाँ खड़ी कर सकती है।

भारत अपनी रक्षा आपूर्ति के लगभग 60 से 70 प्रतिशत हेतु रूस पर निर्भर है , जो कि सीमा पर चीन के साथ चल रहे गतिरोध के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है।

  • इसके कारण, भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि रूस के रक्षा उद्योग को पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना न करना पड़े।

कुछ पश्चिमी विश्लेषकों ने चिंता व्यक्त की है कि रूस चीन के साथ जा सकता है, जिसका असर भारत पर पड़ सकता है।

ऐतिहासिक रूप से, वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान सोवियत संघ की स्थिति भारत के लिए काफी हद तक सहायक नहीं थी। हालाँकि, वर्ष 1971 में, चीन-सोवियत विभाजन ने उसे चीन के विरुद्ध भारत का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया।

भारत और चीन के बीच संभावित संघर्ष की स्थिति में रूस का रुख अतीत की तरह शायद उतना समर्थनकारी न हो।

भारत की चिंता जायज है कि चीन के हिंद-प्रशांत रुख के साथ रूस का तालमेल भारत के ‘बहुध्रुवीय एशिया’ की स्थापना के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न कर सकता है तथा चीन के समक्ष इसकी सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ा सकता है।

हालाँकि, चीन और रूस के संबंधों को अक्सर “रणनीतिक साझेदारी” के रूप में वर्णित किया जाता है, यह कोई औपचारिक गठबंधन नहीं है। वे हमेशा बिना शर्त एक-दूसरे का समर्थन नहीं कर सकते हैं।

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