संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-1: विश्व के विभिन्न भागों (भारत सहित) में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योग।
सामान्य अध्ययन -3: औद्योगिक नीति में परिवर्तन और औद्योगिक विकास पर उनका प्रभाव।
संदर्भ:
भारत सरकार ने 7 अगस्त 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में 11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया।
अन्य संबंधित जानकारी

- भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2024 के हथकरघा पुरस्कार 24 विजेताओं को प्रदान किए जिन्हें दो श्रेणियों में दिया गया यानी 5 विजेताओं को संत कबीर हथकरघा पुरस्कार और 19 को राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार प्रदान किया गया।
- ये पुरस्कार राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP) के अंतर्गत हथकरघा विपणन सहायता (HMA) घटक का हिस्सा हैं।
- ये पुरस्कार उन बुनकरों, डिजाइनरों, विपणक, स्टार्ट-अप और उत्पादक कंपनियों के काम को मान्यता प्रदान करते हैं जिनके कारण इस क्षेत्र में आए बदलाव आया है।
- संत कबीर पुरस्कार विजेताओं को ₹3.5 लाख, एक स्वर्ण सिक्का (जड़ित), ताम्रपत्र, शॉल और प्रमाण पत्र दिया जाता है, जबकि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं को ₹2 लाख, ताम्रपत्र, शॉल और प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है।
- गौरतलब है कि इस दौरान कपड़ा मंत्रालय ने आईआईटी दिल्ली के रिसर्च एंड इनोवेशन पार्क में हैंडलूम हैकथॉन 2025 का भी शुभारंभ किया।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

- राष्ट्रीय हथकरघा दिवस प्रतिवर्ष 7 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन 1905 में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत का प्रतीक है। स्वदेशी आंदोलन ने स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया।
- भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा बुनकर समुदाय के योगदान के सम्मान में 2015 में चेन्नई में पहला समारोह आयोजित किया गया था।
- तब से, यह दिवस भारत की समृद्ध कपड़ा विरासत के संरक्षण में बुनकरों की भूमिका को मान्यता देने और उसका उत्सव मनाने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
भारत का हथकरघा क्षेत्र
- हथकरघा बुनाई भारत का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है और कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार क्षेत्र है, जो ग्रामीण आजीविका की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
- चौथी अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना (2019-20) के अनुसार, लगभग 35.22 लाख परिवार हथकरघा कार्य में शामिल हैं, जिनमें 35 लाख से अधिक बुनकर और संबद्ध श्रमिक शामिल हैं।
- उल्लेखनीय रूप से, आर्थिक रूप से सक्रिय बुनकरों में से 72% महिलाएँ हैं, जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में इस क्षेत्र की भूमिका को उजागर करता है।
भारत अपने विविध हथकरघा वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें शामिल हैं:
- प्राकृतिक रेशे: कपास, खादी, जूट, लिनन
- दुर्लभ रेशे: हिमालयन नेटल
- रेशम: टसर, मशरू, शहतूत, एरी, मूंगा, अहिंसा
- ऊनी कपड़े: पश्मीना, शहतूत, कश्मीरी
• बनारसी, जामदानी और पटोला जैसे प्रतिष्ठित उत्पादों की उनकी जटिल शिल्पकला के लिए विश्व स्तर पर प्रशंसा होती है।
• अन्य प्रसिद्ध शैलियों में ओडिशा से बोमकाई, गोवा से कुनबी, महाराष्ट्र से पैठणी, ओडिशा से कोटपाड़, केरल से बलरामपुरम, पश्चिम बंगाल से जामदानी और बालूचरी शामिल हैं। प्रत्येक उत्पाद पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके हस्तनिर्मित होता है, जिससे प्रत्येक उत्पाद अद्वितीय बन जाता है।
• वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का हथकरघा निर्यात इस प्रकार है:

हथकरघा उद्योग के लिए सरकारी पहल
• मुद्रा योजना: यह व्यक्तिगत बुनकरों और संगठनों को मार्जिन मनी सहायता के साथ 6% ब्याज दर पर रियायती ऋण प्रदान करती है। 2024-25 में, इससे 9,211 बुनकर लाभान्वित हुए और राशि के प्रत्यक्ष हस्तांतरण एवं पारदर्शिता के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया गया।
• कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS): इसे 2021-22 से 2025-26 तक के लिए स्वीकृत किया गया है, जिससे मिल क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने हेतु बुनकरों को रियायती दरों पर गुणवत्तापूर्ण सूत की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। इसमें माल ढुलाई प्रतिपूर्ति और कपास, रेशम, ऊन, लिनन और मिश्रित सूत के लिए 15% सूत सब्सिडी शामिल है।
- सूत आपूर्ति योजना (YSS): इसे अब आंशिक रूप से संशोधित किया गया है और इसका नाम बदलकर कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS) कर दिया गया है, जिसे 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए अनुमोदित किया गया है।
• राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP): राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम का उद्देश्य आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी इकाइयों का गठन करके मान्यता प्राप्त समूहों के भीतर और बाहर हथकरघा बुनकरों के सतत विकास को बढ़ावा देना है।
स्रोत:
