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सामान्य अध्ययन-3: बुनियादी ढांचा: ऊर्जा, बंदरगाह, सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे आदि।
संदर्भ:
भारत सरकार ने भूतापीय ऊर्जा पर राष्ट्रीय नीति (2025) को आधिकारिक तौर पर अधिसूचित कर दिया है, जो देश के नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो में विविधता लाने और 2070 के नेट ज़ीरो लक्ष्य को प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
नीति के बारे में
दृष्टिकोण एवं लक्ष्य:
- भारत की नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में भूतापीय ऊर्जा को एक प्रमुख स्तंभ बनाना, जो देश की जलवायु प्रतिबद्धताओं तथा ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे।
- अनुसंधान, अन्वेषण तथा ड्रिलिंग तकनीकों को सुदृढ़ करना; गृह ताप/शीतलन, ग्रीनहाउस उपयोग जैसे प्रत्यक्ष अनुप्रयोगों को बढ़ावा देना; और ग्राउंड सोर्स हीट पंप (GSHP) तथा उन्नत भूतापीय प्रणालियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
- इस क्षेत्र के सतत विकास हेतु राज्य सरकारों, तेल एवं गैस कंपनियों, अंतरराष्ट्रीय भूतापीय संगठनों तथा अनुसंधान संस्थानों के साथ मजबूत सहयोग को बढ़ावा देना।
संभावनाएँ एवं स्थल मानचित्रण:
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने भारत में 381 गर्म जल स्रोतों की पहचान की है, जिनके सतही तापमान 35°C से 89°C के बीच है। हिमालयी क्षेत्र में तापमान 200°C तक पाया गया है।
- भारत में 10 प्रमुख भूतापीय प्रांत स्थित हैं:
1. हिमालयी भूतापीय प्रांत
2. नागा-लुसाई
3. अंडमान निकोबार द्वीप समूह
4. सोन-नर्मदा-ताप्ती (SONATA)
5. पश्चिमी तट
6. कंबे ग्रैबन
7. अरावली
8. महानदी
9. गोदावरी
10. दक्षिण भारतीय क्रैटोनिक क्षेत्र
अनुप्रयोग की संभावनाएँ: भूतापीय ऊर्जा का मुख्य उपयोग-
- विद्युत उत्पादन
- प्रत्यक्ष उपयोग
- स्थान ताप/शीतलन (Space Heating/Cooling) के लिए ग्राउंड सोर्स हीट पंप (GSHP) का उपयोग
विकास एवं वित्तीय मॉडल: क्रमिक दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा, जिसमें शामिल हैं-
- संसाधन मूल्यांकन
- अन्वेषणीय ड्रिलिंग
- विस्तृत व्यवहार्यता अध्ययन
- निर्माण, कमीशनिंग एवं संचालन
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) तथा तेल एवं गैस क्षेत्र के साथ संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देना, जिससे विशेषज्ञता एवं मौजूदा अवसंरचना का लाभ उठाया जा सके।
वित्तीय प्रोत्साहन की व्यवस्था:
- आयात शुल्क एवं GST से छूट
- कर अवकाश (Tax Holidays)
- रियायती ऋण (Concessional Loans)
- वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF)
नीति दस्तावेज के अनुसार, स्वदेशी भूतापीय प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे आयातित उपकरणों पर निर्भरता कम हो और ड्रिलिंग, डाउनहोल निगरानी तकनीक, तथा रिज़र्वायर प्रबंधन में स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहन मिले।
नवाचार को गति देने हेतु नीति में निम्नलिखित को बढ़ावा दिया गया है:
- हाइब्रिड भूतापीय-सौर संयंत्रों का अनुसंधान एवं विकास
- परित्यक्त तेल कुओं का पुनः उपयोग (रेट्रोफिटिंग)
- उन्नत एवं संवर्धित भूतापीय प्रणालियों (EGS/AGS) का तैनातीकरण
नियमन एवं क्रियान्वयन:
- राज्य स्तर पर सिंगल विंडो क्लियरेंस की व्यवस्था होगी, और प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में भूतापीय ऊर्जा हेतु नामित नोडल एजेंसियाँ स्थापित की जाएंगी।
- पर्यावरण, वन, जल एवं भूमि संबंधी नियमों का पालन अनिवार्य होगा, साथ ही जनजातीय एवं दूरदराज़ क्षेत्रों में हितधारकों से परामर्श भी आवश्यक होगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) को नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य सौंपा गया है। इसकी प्रमुख जिम्मेदारियाँ होंगी:
1. ” उत्कृष्टता केंद्र ” की स्थापना
2. डेटा भंडार (डेटा रिपॉजिटरी) का रखरखाव
3. समय-समय पर निगरानी एवं रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना
भारत की भूतापीय ऊर्जा क्षमता
भारत में लगभग 10.6 गीगावाट (GW) की अनुमानित भूतापीय ऊर्जा क्षमता उपलब्ध है, जो भविष्य में अधिक अन्वेषण के साथ और बढ़ सकती है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार: “चीन, अमेरिका और भारत में अगली पीढ़ी की भूतापीय विद्युत उत्पादन के लिए सबसे अधिक बाज़ार क्षमता है; ये तीनों देश वैश्विक क्षमता का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा रखते हैं।”
IEA का अनुमान है कि भारत की भूतापीय विद्युत क्षमता:
- 2035 तक 4.2 GW
- और 2045 तक लगभग 100 GW तक पहुँच सकती है।
उपयोग में चुनौतियाँ:
भूतापीय ऊर्जा के व्यावसायिक उपयोग में मुख्य बाधाएँ हैं:
- उच्च प्रारंभिक निवेश लागत (High Upfront Cost)
- अन्वेषण संबंधी जोखिम (Exploration Risks)
अनुमानतः, एक मेगावाट (MW) की भूतापीय क्षमता विकसित करने में लगभग ₹36 करोड़ की लागत आती है।