संदर्भ:
हाल ही में यूनिसेफ द्वारा जारी विश्व के बच्चों की स्थिति रिपोर्ट 2024 (SOWC-2024) रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के लगभग आधे बच्चे (लगभग 1 बिलियन) ऐसे देशों में रहते हैं जो जलवायु और पर्यावरणीय खतरों के उच्च जोखिम का सामना कर रहे हैं।
SOWC-2024, रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं:
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यह रिपोर्ट विश्व बाल दिवस (20 नवंबर) पर “भविष्य को सुनें” विषय के अंतर्गत जारी की गई, जिसमें बच्चों और युवाओं की आवाजों पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि वे किस तरह की दुनिया चाहते हैं।
रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक बच्चों के जीवन को आकार देने वाली तीन प्रमुख प्रवृत्तियों की पहचान की गई है:
- जनसांख्यिकीय बदलाव
- जलवायु एवं पर्यावरण संकट
- उभरती/सीमांत प्रौद्योगिकियाँ
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक बाल जनसंख्या लगभग 2.3 बिलियन पर पहुँच जाने का अनुमान है।
दक्षिण एशिया अत्यधिक बाल जनसंख्या वाला प्रमुख क्षेत्र बना रहेगा। पूर्वी, दक्षिणी अफ्रीका तथा पश्चिमी एवं मध्य अफ्रीका में भी बाल जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
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किसी बच्चे के 5 वर्ष की आयु तक जीवित रहने की संभावना (नवजात शिशु के रूप में जीवित रहने पर) 2000 के दशक की स्थिति से 1 प्रतिशत बढ़कर 99.5 प्रतिशत हो गई है।
जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होगी, जिसमें लड़कियों की आयु 81 वर्ष तथा लड़कों की आयु 76 वर्ष तक पहुंच जाएगी, जो 2000 के दशक में जन्मे बच्चों के लिए क्रमशः 70 तथा 66 वर्ष थी।
रिपोर्ट में उल्लिखित कमियाँ :
- बच्चों का विकासित हो रहा शरीर प्रदूषण और चरम मौसमी घटनाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होता है।
- जन्म से ही बच्चों के मस्तिष्क, फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली को वायु प्रदूषण, अत्यधिक गर्मी और चरम मौसम संबंधी घटनाओं से खतरा रहता है।
- वायु प्रदूषण का बच्चों के श्वसन स्वास्थ्य और विकास पर आजीवन प्रभाव पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
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- बढ़ते तापमान के कारण मच्छरों की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे बच्चों में मलेरिया, डेंगू और जीका जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।
- बाढ़ से जल आपूर्ति दूषित हो जाती है, जिससे जलजनित रोग फैलते हैं, जो पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
- जलवायु संबंधी आपदाएं बच्चों में आघात, चिंता और असहाय की भावना पैदा कर सकती हैं।
- वर्ष 2050 तक, 2000 के दशक की तुलना में अधिक बच्चे चरम जलवायु घटनाओं के संपर्क में आएंगे।
- विश्व में 400 मिलियन छात्र पहले ही खराब मौसम के कारण स्कूल बंद होने का सामना कर रहे हैं, जो न केवल बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि आर्थिक विकास को भी बाधित करता है।
प्रौद्योगिकी और डिजिटल विभाजन का प्रभाव:
- उच्च आय वाले देशों में 95% से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, जबकि निम्न आय वाले देशों में केवल 26% लोगों तक इसकी पहुंच है।
- डिजिटल विभाजन असमानताओं को बढ़ाता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां बच्चों की आबादी तेजी से बढ़ रही है।
- डिजिटल प्रौद्योगिकी बच्चों को सशक्त बना सकती है, लेकिन वे उन्हें यौन शोषण और दुर्व्यवहार जैसे ऑनलाइन जोखिमों के प्रति भी उजागर करती है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), न्यूरोटेक्नोलॉजी, नवीकरणीय ऊर्जा और वैक्सीन जैसी प्रौद्योगिकियों में भविष्य में बचपन को बेहतर बनाने की क्षमता है।
रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें:
यूनिसेफ ने सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र, व्यवसायों, गैर-सरकारी और मानवाधिकार संगठनों तथा नागरिक समाज से निम्न तीन प्रमुख क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई करने की सिफारिश की है:
- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और बाल-संवेदनशील बुनियादी ढांचे में निवेश करना।
- जलवायु लोच और स्थिरता को एकीकृत करना, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना और वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कटौती करने के समाधानों को बढ़ावा देना।
- डिजिटल समानता को बढ़ावा देना और साथ ही सुरक्षित, अधिकार-आधारित प्रौद्योगिकी विकास सुनिश्चित करना। जनसांख्यिकीय, पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियों के बीच बच्चों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए ये कार्य महत्वपूर्ण हैं।