संदर्भ : 

मणिपुर सरकार ने विभिन्न संगठनों और संघों के साथ मिलकर मैतेई सगोल या सागोल (मणिपुरी टट्टू) को विलुप्त होने से बचाने का निर्णय लिया।

अन्य संबंधित जानकारी       

  • हाल ही में, मैतेई सगोल या मणिपुरी टट्टू के संरक्षण पर विचार करने हेतु इम्फाल में मणिपुर हॉर्स राइडिंग एंड पोलो एसोसिएशन, मणिपुर घुड़सवारी एसोसिएशन, मणिपुरी टट्टू सोसाइटी के प्रमुखों और राज्य पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विभाग के अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक आयोजित हुई थी।
  • मणिपुरी टट्टू एक अश्व (घोड़ा परिवार का सदस्य) नस्ल है, जो भारत के मणिपुर राज्य की स्थानिक प्रजाति है।

इस संयुक्त बैठक में लिए गए निर्णयों में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:

  • पशुओं को अस्थायी रूप से रखने के लिए क्षेत्र का सीमांकन।
  • टास्क फोर्स का गठन। 
  • टट्टू के प्रबंधन हेतु बजट का आवंटन। 
  • चरागाहों और स्थायी पर्यवासों का सर्वेक्षण करना।
  • टट्टू के पंजीकरण के लिए स्टड बुक (Stud Book) को अंतिम रूप देना।
  • औपचारिक रूप से टट्टुओं की गणना करना।

मणिपुरी टट्टू के संरक्षण हेतु वर्ष 2016 में मणिपुरी टट्टू संरक्षण और विकास नीति (Manipuri Pony Conservation and Development Policy-MPCDP) तैयार की गई थी।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो/पशु आनुवंशिकी संस्थान की स्थापना 21 सितंबर, 1984 को राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (दक्षिणी क्षेत्रीय स्टेशन), बैंगलोर के परिसर में की गई थी।
  • इस संस्थान को वर्ष 1985 में करनाल में स्थानांतरित कर दिया गया तथा यह अस्थायी रूप से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के परिसर में स्थित किया गया।
  • आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो और राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी संस्थान को वर्ष 1995 में आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो नामक एक संस्था के रूप में कार्य करने के लिए विलय कर दिया गया था। 

मैतेई सगोल (मणिपुरी टट्टू)    

  • यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) का राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Bureau of Animal Genetic Resources) के तहत भारत की सात मान्यता प्राप्त घोड़ा और टट्टू की नस्लों में से एक है।
  • यह अपनी अनूठी आंतरिक शक्ति, चपलता, बुद्धिमत्ता, गति, गतिशीलता और दुर्गम भू-जलवायु परिस्थितियों के प्रति अनुकूलनशीलता  के लिए जाना जाता है।
  • इसे असली पोलो टट्टू  माना जाता है, क्योंकि आधुनिक पोलो मणिपुर के पारंपरिक सगोल कांगजेई { Sagol Kangjei} (जिसको अंग्रेजी में (Hockey on Horseback)) खेल से लिया गया है।
  • मणिपुर की राज्य सरकार ने सगोल कांगजेई को राज्य खेल  घोषित किया है।
  • मणिपुर में टट्टुओं का उपयोग पारंपरिक आयोजनों जैसे लाई हराओबा (Lai haraoba), पोलो (Polo), रेस (Race) आदि में किया जाता है। 
  • भारत की अन्य मान्यता प्राप्त घोड़ा और टट्टू नस्लें हैं: भूटिया (सिक्किम और अरुणाचल), काठियावाड़ी (गुजरात), मारवाड़ी (राजस्थान), स्पीति (हिमाचल प्रदेश), ज़ांस्करी (जम्मू और कश्मीर) कच्छी-सिंधी (गुजरात और राजस्थान)।
  • इसकी जनसंख्या तेजी से कम हो रही है, जो कि 17वीं पशुधन जनगणना (2003) के 1,898 जानवरों से कम होकर वर्ष 2019 में 1089 हो गई है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के घरेलू पशु विविधता पर विश्व निगरानी सूची में इस नस्ल को “एक संकटग्रस्त पशु”  के रूप में सूचीबद्ध किया है।
  • मणिपुर सरकार ने भी वर्ष 2013 में मणिपुरी टट्टू को संकटग्रस्त नस्ल घोषित किया था।

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