संदर्भ:

मुरिया जनजातियों की अनोखी, पारंपरिक और पर्यावरण अनुकूल बीज संरक्षण तकनीक को ‘डेडा’ (Deda) के नाम से जाना जाता है।                                

मुख्य अंश

  • अल्लूरी सीतारमा राजू जिले में स्थित चुक्कलापाडु में मुरिया आदिवासी किसान पीढ़ियों से चली आ रही ‘डेडा’ के नाम से जानी जाने वाली पारंपरिक बीज संरक्षण पद्धति का अभ्यास करना जारी रखे हैं।
  • डेडा विधि: इस विधि में पत्तियों में बीज को संरक्षित करना, उन्हें बोल्डर जैसा दिखने के लिए लगभग वायुरोधी पैक करना और डेडा बनाने के लिए उन्हें सियाली पत्ती (बौहिनिया वाहली) [जिसे स्थानीय रूप से ‘अड्डाकुलु’ के नाम से जाना जाता है] के साथ बुनना शामिल है।
  • बहु-परत संरक्षण: डेडा प्रक्रिया में निम्न तीन परतें शामिल होती हैं:
  • सबसे पहले सियाली के पत्तों के अंदर लकड़ी की राख फैलाई जाती है।
  • इसके बाद राख को नींबू के पत्तों से ढककर आवरण बना दिया जाता है।
  • अंत में, बीजों को आवरण के अंदर रख दिया जाता है और सील कर दिया जाता है।
  • प्रत्येक डेडा में 5 किलोग्राम तक बीज रखा जा सकता है तथा यह उन्हें कीटों और कृमियों से बचाता है, जिससे उन्हें पांच वर्षों तक संरक्षित रखा जा सकता है।
  • प्रवास और अनुकूलन: मूल रूप से छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजातियाँ आंध्र प्रदेश की गोदावरी घाटी में प्रवास कर गई हैं।
  • विस्थापन के बावजूद, वे अपने पारंपरिक तरीकों, जैसे- डेडा पद्धति को जारी रखते हैं, जिससे उनके परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • लघु-स्तरीय कृषि: मुरिया जनजाति के लोग आम तौर पर आधे एकड़ से भी कम की छोटी-छोटी जोतों पर मिश्रित फसलों की खेती करते हैं।
  • उनकी मुख्य फसलें मक्का और दालें हैं, तथा धान पर उनकी निर्भरता न्यूनतम है।

मुरिया जनजाति

  • मुरिया छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का एक आदिवासी समुदाय और अनुसूचित जनजाति है। वे गोंडी लोगों का एक उपसमूह हैं।
  • भौगोलिक प्रसार: मुरिया जनजाति तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में निवास करती है।
  • मुरिया बस्तियों की पहचान आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDPs) के आवास के रूप में की जाती है।
  • आंध्र प्रदेश में उनकी जनसंख्या लगभग 6,600 है और स्थानीय जनजातियाँ उन्हें ‘गुट्टी कोया’ के नाम से पुकारती हैं।
    • वामपंथी उग्रवादियों और राज्य प्रायोजित सलवा जुडूम के बीच संघर्ष के दौरान मुरिया आदिवासी छत्तीसगढ़ से भागकर आंध्र प्रदेश के आरक्षित वनों में बस गए।
  • भाषा: वे कोया (जो एक द्रविड़ भाषा है) में बातचीत करते हैं।
  • छत्तीसगढ़ में गुट्टी कोया को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त है।
  • हालाँकि, जिन राज्यों में वे प्रवास कर गए हैं (जैसे- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), वहां उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया गया है।
  • उनका विवाह और सामान्य रूप से जीवन पर प्रगतिशील दृष्टिकोण है। घोटुल (एक सामुदायिक शयनागार) एक स्थान होता है, जिसे मुरिया युवाओं को उनकी कामुकता का पता लगाने और समझने के लिए एक स्थान प्रदान करनेवाली जगह के रूप में जाना जाता है।

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