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सामान्य अध्ययन-1: भूकंप, सुनामी, जलवायु गतिविधि, चक्रवात इत्यादि जैसे महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकी घटनाएँ। सामान्य अध्ययन -3:आपदा और आपदा प्रबंधन।
संदर्भ: वर्ष 2025 में जनवरी से नवंबर के बीच 11 महीनों में भारत ने अभूतपूर्व जलवायु संकट का सामना किया, जहाँ 334 में से 331 दिन बाढ़, उष्णलहर और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं आईं। इन आपदाओं में 4,419 लोगों की मौतें हुई और 1.74 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि का नुकसान हुआ। यह देश में विनाशकारी ‘न्यू क्लाइमेट नॉर्मल’ (New Climate Normal) का संकेत है।
मुख्य निष्कर्ष:
- जलवायु प्रभावों की बढ़ती तीव्रता और निरंतरता: भारत ने जनवरी और नवंबर 2025 के बीच 11 महीनों में 99% दिन अर्थात 334 में से 331 दिन चरम मौसमी घटनाओं का अनुभव किया।
- चरम मौसम की सीमा: इन आपदाओं में उष्णलहरों और शीत लहरों से लेकर आकाशीय बिजली, तूफान, चक्रवात, बादल का फटना, मूसलाधार वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन शामिल थे।
- जन-धन की हानि: इन आपदाओं में कम से कम 4,419 लोगों की मौतें हुई, लगभग 1.74 करोड़ हेक्टेयर फसली भूमि को नुकसान पहुंचा, कम से कम 1,81,459 घर नष्ट हुए और लगभग 77,189 पशुओं की मौत हुई।
- राज्यों में भिन्न-भिन्न स्थिति:
- इस अवधि के दौरान हिमाचल प्रदेश में लगभग 80 प्रतिशत दिन चरम मौसम दर्ज किया गया।
- आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक मौतें (608) दर्ज की गईं।
- महाराष्ट्र में फसली क्षेत्र को हुआ नुकसान सबसे अधिक अर्थात 8.4 मिलियन (84 लाख) हेक्टेयर था।
- क्षेत्रीय स्तर पर, 2025 में उत्तर-पश्चिम भारत ने सबसे अधिक चरम मौसमी दिनों का अनुभव किया क्योंकि वहाँ 311 दिन ऐसी घटनाएँ दर्ज की गईं।
- टूटते जलवायु रिकॉर्ड की श्रृंखला: 1901 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से इस वर्ष जनवरी, भारत का पांचवां सबसे शुष्क महीना रहा, जबकि फरवरी 124 वर्षों में सबसे गर्म रहा।
- दैनिक चरम स्थितियां: हालांकि देश ने पिछले तीन वर्षों में प्रतिदिन कम से कम एक आपदा का सामना किया है, लेकिन 2025 में चरम मौसमी दिनों की संख्या सबसे अधिक रही और इनसे सबसे अधिक जान-माल का नुकसान हुआ।
- उष्णलहरों का शीघ्र आगमन: गोवा और महाराष्ट्र में 25 फरवरी को साल की पहली उष्णलहर (Heatwave) महसूस की गई। ऐसा पहली बार हुआ है जब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा परिभाषित जनवरी-फरवरी की शीतकालीन अवधि के दौरान उष्णलहर दर्ज की गई है। IMD ने पुष्टि की कि फरवरी 2025 अब तक का सबसे गर्म फरवरी रहा।
- “गैर-मानसूनकालीन” चरम घटनाओं की बढ़ती गंभीरता: बिजली गिरने, तूफान, बाढ़, भूस्खलन और लू जैसी घटनाओं में अचानक आई तेजी के कारण मृतकों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।
- मानसून की असमान और अनिश्चित प्रकृति: मानसून के अंत तक, देश के 727 जिलों में से 147 जिले (लगभग 20 प्रतिशत) ऐसे थे जहाँ वर्षा सामान्य से कम या बहुत कम हुई।
- भौगोलिक विस्तार में वृद्धि: 2024 में, नवंबर की शीत लहरें केवल महाराष्ट्र और राजस्थान तक सीमित थीं, लेकिन 2025 में, भारत के चारों क्षेत्रों के 13 राज्यों में शीत लहरें दर्ज की गई।
निष्कर्षों का महत्त्व:
- चरम घटनाओं की बढ़ती नियमितता विशेष रूप से असुरक्षित आबादी को खतरे में डालती है क्योंकि उनके पास इस तरह की आपदाओं से अपना बचाव करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं होते हैं।
- बदलते मौसमी पैटर्न स्पष्ट रूप से ऋतुओं के बीच के अंतर को समाप्त कर रहे हैं। अब साल के बारहों महीने चरम मौसम का खतरा बना रहता है, जो न केवल जन-जीवन और आजीविका, बल्कि कृषि और पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर संकट बन रहा है।
- ये रुझान बढ़ते पारिस्थितिक असंतुलन का संकेत देते हैं और उचित जलवायु कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
