संदर्भ :
विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर भगवद् गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियों को यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर में अंकित किया गया।
अन्य संबंधित जानकारी:
- यह एक वैश्विक सम्मान है इनको शामिल करने के साथ ही यूनेस्को की सूची में भारत के कुल अभिलेखों की संख्या 14 हो गई है।
- भगवद् गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियाँ उन 74 नए दस्तावेजी विरासत संग्रहों में शामिल हैं, जिन्हें 17 अप्रैल तक यूनेस्को के विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किया गया है।
- इन अतिरिक्तताओं के साथ, मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अब विश्व भर से 570 दस्तावेजी संग्रह शामिल हो गए हैं।
भगवद गीता के बारे में

- भगवद् गीता, एक हिंदू धर्मग्रंथ, जो दूसरी या पहली शताब्दी ईसा पूर्व का है और यह महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है।
- इसमें 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं, जो महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व ( अध्याय 23-40) में लिखे गए हैं।
- यह सतत, संचयी प्राचीन बौद्धिक भारतीय परंपरा का एक केंद्रीय ग्रंथ है, जो वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक जैसे विभिन्न विचार आंदोलनों का संश्लेषण करता है।
- अपनी दार्शनिक व्यापकता और गहराई के कारण, भगवद्गीता को सदियों से दुनिया भर में पढ़ा जाता रहा है और कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है।
नाट्यशास्त्र के बारे में
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र, भारतीय नाट्यशास्त्र और प्रदर्शन कला पर एक आधारभूत संस्कृत ग्रन्थ है, जिसे पांचवां वेद माना जाता है।
भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में संरक्षित इस ग्रन्थ के बारे में माना जाता है कि इसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास संहिताबद्ध किया गया था, और इसे नाट्यवेद का सार माना जाता है।
- नाट्यवेद प्रदर्शन कला की एक मौखिक परंपरा है जिसमें 36,000 श्लोक हैं, जिसे गान्धर्ववेद के नाम से भी जाना जाता है ।
यह भारतीय रंगमंच, काव्यशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र, नृत्य और संगीत के लिए एक आधारभूत मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करता है तथा विभिन्न कला रूपों के लिए एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिसमें नाट्य (नाटक), अभिनय (प्रदर्शन), रस (सौंदर्यात्मक सार), भाव (भावना) और संगीत (संगीत) शामिल हैं।
नाट्यशास्त्र में सबसे महत्वपूर्ण घोषणाओं में से एक भरतमुनि का कथन है कि “रस के बिना कोई भी अर्थ विकसित नहीं हो सकता”, यह एक कालातीत अंतर्दृष्टि है जो वैश्विक साहित्य और कला को प्रभावित करती रहती है।