संदर्भ:
हाल ही में, बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2024 लोकसभा में एक सप्ताह की देरी के बाद से पारित हो गया।
संशोधन विधेयक के बारे में:
यह विधेयक अगस्त 2024 में पेश किया गया था और इसके द्वारा बैंकिग कामकाज के संचालन में सुधार करने और नियमों को आधुनिक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण बैंकिंग कानूनों में संशोधन किया गया है, जिसमें निम्न शामिल हैं:
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955
- बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण एवं अंतरण) अधिनियम, ‘1970’ और ‘1980’
प्रस्तावित बैंकिंग विधेयक का उद्देश्य शासन मानकों को बढ़ाना, बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को लगातार रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना, जमाकर्ताओं और निवेशकों हेतु सुरक्षा में सुधार करना और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में लेखापरीक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
विधेयक के प्रमुख संशोधन और प्रावधान
नकद भंडार (कैश रिजर्व्स) के लिये “पखवाड़े” (फोर्टनाइट) शब्द को पुनः परिभाषित करना:
आरबीआई अधिनियम के अनुसार अनुसूचित बैंकों को एक पखवाड़े (14 दिन) में औसत दैनिक शेष राशि के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक के पास नकदी भंडार बनाए रखनी होती है।
एक पखवाड़े को शनिवार से अगले शुक्रवार तक (दोनों दिन सहित) की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। प्रस्तावित परिभाषा: अब यह होगा:
- प्रत्येक महीने के 1 से 15 वें दिन, या
- प्रत्येक महीने की 16 तारीख से अंतिम दिन।
यह बदलाव बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत आने वाले गैर-अनुसूचित बैंकों पर भी लागू होता है।
- प्रभाव: यह परिवर्तन बैंकों द्वारा आरबीआई के पास नकदी भंडार बनाए रखने के तरीके को प्रभावित करता है।
सहकारी बैंकों में निदेशकों का कार्यकाल:
- वर्तमान नियम: निदेशक केवल 8 लगातार वर्षों तक ही सेवा कर सकते थे ( अध्यक्ष या पूर्णकालिक निदेशक को छोड़कर)।
- प्रस्तावित नियम: अब, वे लगातार 10 वर्षों तक पद पर बने रह सकते हैं।
सहकारी बैंकों के मामले में सामान्य निदेशकों पर प्रतिबंध:
- वर्तमान नियम: किसी बैंक के निदेशक दूसरे बैंक के बोर्ड में (भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त निदेशकों को छोड़कर) सेवा नहीं दे सकते हैं।
- प्रस्तावित नियम: केंद्रीय सहकारी बैंकों के निदेशक अब ऐसे राज्य सहकारी बैंकों के बोर्ड में सेवा दे सकते हैं जहां वे सदस्य हैं।
कंपनियों में पर्याप्त हित :
वर्तमान सीमा: किसी कंपनी में पर्याप्त ब्याज (सब्सटांशियल इंटरेस्ट) को 5 लाख रुपये से अधिक या कंपनी की पूंजी का 10%, जो भी कम हो, के शेयरों को रखने के रूप में परिभाषित किया गया था।
प्रस्तावित सीमा: बिल इस सीमा को बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए कर दिया गया है और केंद्र सरकार बाद में एक अधिसूचना के माध्यम से इसमें बदलाव कर सकती है।
जमा और लॉकर के लिए नामांकन नियम:
वर्तमान नियम: केवल एक नामांकित व्यक्ति (nominee) को जमाधारक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
प्रस्तावित नियम: अब, अधिकतम 4 नामांकित व्यक्तियों को नियुक्त किया जा सकता है।
- जमा के लिए: नामांकित व्यक्तियों को एक साथ या एक के बाद एक चुना जा सकता है, जिसमें शेयरों को तदनुसार विभाजित किया जा सकता है। क्रमिक नामांकन की अनुमति है और प्राथमिकता नामांकन क्रम पर आधारित होगी।
दावा रहित राशियों का निपटान:
वर्तमान नियम: भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम और 1970 और 1980 के बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियमों के अनुसार, दावा रहित लाभांश को 7 वर्षों के बाद निवेशक शिक्षा और संरक्षण निधि (IEPF) में स्थानांतरित कर दिया जाता था।
प्रस्तावित नियम: अब शामिल हैं:
- 7 वर्षों तक दावा रहित शेयर या भुगतान न किया गया लाभांश।
- 7 वर्षों के लिए बांड हेतु भुगतान न किया गया ब्याज ।
- कोई भी व्यक्ति जिसका शेयर या दावा रहित / भुगतान न की गई धनराशि IEPF में हस्तांतरित कर दिया गया है, वह हस्तांतरण या रिफंड का दावा कर सकता है।
लेखा परीक्षक का पारिश्रमिक:
- वर्तमान नियम: भारतीय रिजर्व बैंक सरकार के परामर्श से लेखा परीक्षकों का पारिश्रमिक तय करता है।
- प्रस्तावित नियम: बैंक अपने लेखा परीक्षकों के लिए पारिश्रमिक स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं।