संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-2: सरकारी नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन और कार्यान्वयन से संबंधित विषय।
सामान्य अध्ययन -3: किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी; खाद्य सुरक्षा से संबंधित विषय।
संदर्भ: हाल ही में, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बीज विधेयक 2025 का मसौदा जारी किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य मौजूदा बीज अधिनियम, 1966 और बीज (नियंत्रण) आदेश, 1983 को प्रतिस्थापित करना है।
- कृषि मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह नया विधेयक किसानों के अधिकारों की रक्षा और बीज आपूर्ति श्रृंखलाओं में पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
- नया मसौदा विधेयक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकारों द्वारा क्रमशः 2004 और 2019 में किए दो असफल प्रयासों के बाद लाया गया है।
विधेयक की मुख्य विशेषताएं
- उद्देश्य और दायरा:
- इसका उद्देश्य बाज़ार में उपलब्ध बीजों और रोपण सामग्री की गुणवत्ता को विनियमित करना है।
- किसानों को किफायती दरों पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराना।
- नकली, घटिया या गैर-पंजीकृत बीजों की बिक्री पर रोक लगाना।
- बीज आयातों का उदारीकरण करके और वैश्विक किस्मों तक पहुँच बनाकर नवाचार का संवर्धन।
- बीज आपूर्ति श्रृंखलाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना, किसानों के अधिकारों की रक्षा करना।
- केंद्रीय और राज्य बीज समितियों के गठन और भूमिकाओं को परिभाषित करना।
- पंजीकरण और विनियमन:
- सभी बीज विक्रेताओं और वितरकों को बीजों की बिक्री, भंडारण करने, आयात करने, निर्यात करने या आपूर्ति करने से पहले राज्य सरकार से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा।
- बीज की बिक्री में अंकुरण, आनुवंशिक और भौतिक शुद्धता, गुण और बीज स्वास्थ्य पर उन राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन किया जाना चाहिए, जो भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणन मानकों के तहत निर्धारित किए गए है।
- बीज अधिनियम, 1966 की धारा 5 के तहत अधिसूचित मौजूदा किस्मों को नए कानून के तहत पंजीकृत माना जाएगा।
- यह विधेयक ट्रेसेबिलिटी पर जोर देता है, बीजों के मूल्य नियंत्रण की शक्ति केंद्र सरकार को सौंपता है। इसके साथ ही आईसीएआर तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की किस्म के परीक्षणों को मंजूरी देने की शक्ति को समाप्त कर दिया गया है।
- बीजों के आयात पर प्रावधान: केंद्र सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट मात्रा और शर्तों के अनुरूप अनुसंधान और परीक्षण उद्देश्यों के लिए बीज की अपंजीकृत किस्मों के आयात की अनुमति दे सकती है।
- अपराध और दंड: इसमें छोटे अपराधों का गैर-अपराधीकरण करने का भी प्रस्ताव है, और इस प्रकार यह ‘व्यापार सुगमता’ को बढ़ावा देगा तथा अनुपालन के बोझ को कम करेगा।
- प्रमुख अपराधों में नकली या अपंजीकृत बीजों की बिक्री करना और अनिवार्य पंजीकरण के बिना उनका उपयोग करना शामिल है।
- इसका गंभीर उल्लंघन करने पर दंडस्वरूप में 30 लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की कैद हो सकती है।
विधेयक के सकारात्मक पहलू
- भारत के बीज नियामक ढांचे का आधुनिकीकरण: यह बीज की सभी किस्मों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल सत्यापित और गुणवत्तापूर्ण बीज ही बाजार में लाए जाएंगे।
- पता लगाने की क्षमता में सुधार और बाजार अनुशासन: यह पूरी आपूर्ति श्रृंखला के दौरान बीजों की गुणवत्ता का बेहतर ढंग से पता लगाने की क्षमता विकसित करता है, जिससे गुणवत्ता में कमी के मामलों में त्वरित कार्रवाई संभव हो पाती है।
- विविध किस्मों तक आसान पहुँच: यह पहले से अधिसूचित किस्मों को पंजीकृत मानता है, और मौजूदा बीजों की निरंतरता और त्वरित उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- व्यापार सुगमता: यह छोटे अपराधों को अपराधमुक्त बनाने, व्यापार संस्कृति को बढ़ावा देने और अनुपालन बोझ को कम करने का प्रस्ताव करता है, जबकि गंभीर उल्लंघन के लिए दंडित करने के सख्त प्रावधान करता है।
विधेयक से जुड़ी चुनौतियाँ
- किसान के लिए सीमित सुरक्षा उपाय: यद्यपि विधेयक किस्मों के पंजीकरण पर ज़ोर देता है, यह किसानों की बीज संरक्षण और विनिमय की पारंपरिक प्रथाओं के संरक्षण पर सीमित स्पष्टता प्रदान करता है।
- नियामक प्राधिकरण का संकेन्द्रण: विधेयक प्रमुख शक्तियों को केंद्रीकृत करता है—जिसमें मूल्य नियंत्रण, आयात अनुमोदन और विवाद समाधान शामिल हैं—जिससे राज्य सरकारों की नियामक स्वायत्तता संभावित रूप से कम हो सकती है।
- अपर्याप्त जैव सुरक्षा उपाय: विधेयक विशेष रूप से ट्रांसजेनिक या जीएम बीजों के संबंध में सीमित जैव सुरक्षा उपाय करता है, क्योंकि यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA) पर आधारित या जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की अनिवार्य जाँच को बीज नियामक ढाँचे में शामिल नहीं करता है।
- किसान क्षतिपूर्ति तंत्र में खामियाँ: हालाँकि विधेयक “आपातकालीन स्थितियों” में मूल्य विनियमन की अनुमति देता है, लेकिन यह तब किसानों के लिए क्षतिपूर्ति ढाँचे पर कोई विचार नहीं करता है जब बीजों का प्रदर्शन खेतों में खराब रहा हो।
आगे की राह
- किसान सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करना: अधिनियम में कृषि-संरक्षित बीजों को बचाने, उपयोग करने, विनिमय करने और बेचने के किसानों के पारंपरिक अधिकारों को स्पष्ट रूप से मान्यता देने और उनकी रक्षा करने की आवश्यकता है।
- स्पष्ट दायित्व और क्षतिपूर्ति ढाँचा तैयार करना: बीजों के खराब होने की स्थिति में अस्पष्टता से बचने के लिए बीज मूल्य श्रृंखला में जवाबदेही को उचित रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
- मजबूत जैव सुरक्षा और विनियामक जांच लागू करना: ट्रांसजेनिक या आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों को विनियमित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, GEAC दिशानिर्देशों और कार्टाजेना प्रोटोकॉल जैसे अन्य जैव सुरक्षा ढांचे के साथ सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना आवश्यक है।
- वैज्ञानिक निगरानी बहाल करना: किस्मों के परीक्षण, क्षेत्रीय उपयुक्तता आकलन और वैज्ञानिक मूल्यांकन में ICAR और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की परिभाषित भूमिका बहाल करना।
