संदर्भ:

नेचर पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन के अनुसार, भारत सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक देश है, जो प्रतिवर्ष 9.3 मिलियन टन या वैश्विक उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा उत्सर्जित करता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक जलाता है तथा 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक को मलबे के रूप में पर्यावरण (भूमि, वायु, जल) में छोड़ता है।
  • नाइजीरिया और इंडोनेशिया क्रमशः 3.5 मिलियन टन और 3.4 मिलियन टन के साथ दूसरे और तीसरे सबसे बड़े प्रदूषक हैं, जबकि चीन चौथे स्थान पर है।
  • विश्व का प्रतिवर्ष 69% (35.7 मिलियन टन) प्लास्टिक कचरा 20 देशों से आता है।
  • उच्च आय वाले देश अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, लेकिन 100% संग्रहण पहुँच और नियंत्रित निपटान के कारण वे शीर्ष 90 प्रदूषकों से बाहर हैं।
  • प्रति व्यक्ति आधार पर, चीन 153वें स्थान पर तथा भारत 127वें स्थान पर है, जबकि दोनों देश उच्च उत्सर्जक हैं, जो जनसंख्या के महत्वपूर्ण आकार तथा विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को दर्शाता है।

प्लास्टिक उत्सर्जन: इसमें वे सामग्रियाँ शामिल हैं जो कचरे के लिए नियंत्रित प्रणालियों से (चाहे वे बुनियादी हों, प्रबंधित हों या कुप्रबंधित) ऐसे वातावरण में पहुँच गई हैं जहाँ वे किसी नियंत्रण में नहीं हैं। 

प्रबंधित अपशिष्ट: यह नगर निकायों द्वारा एकत्र किया गया प्लास्टिक अपशिष्ट है, जिसे या तो पुनर्चक्रित किया जाता है या लैंडफिल में भेजा जाता है। 

अप्रबंधित अपशिष्ट: इसमें वह प्लास्टिक शामिल है जिसे खुले में, अनियंत्रित आग में जलाया जाता है, जिससे महीन कण और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं।

  • ग्लौबल साउथ में प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत अप्राप्य कचरा है, जो प्लास्टिक कचरे का 68% और मलबे के उत्सर्जन का 85% हिस्सा है।
  • उच्च आय वाले देशों में कूड़ा-कचरा प्लास्टिक उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है, जो मलबे के उत्सर्जन में 53% तथा वैश्विक उत्तरी क्षेत्र में सभी प्लास्टिक उत्सर्जन में 49% का योगदान देता है।

प्लास्टिक प्रबंधन की दिशा में सरकारी पहल

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2024
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) 2.0
  • वैश्विक प्लास्टिक कार्रवाई भागीदारी (GPAP)
  • विश्व पर्यावरण दिवस

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण की वजह

  • जनसंख्या वृद्धि और समृद्धि: भारत की बड़ी और बढ़ती आबादी, बढ़ती प्रचूरता के साथ मिलकर कचरे को और बढ़ा रही है। देश पर्याप्त कचरा प्रबंधन सेवाएँ उपलब्ध कराने में संघर्ष कर रहा है, जिससे समस्या और भी गंभीर हो रही है।
  • डंपिंग साइट बनाम लैंडफिल: डंपिंग साइटों (कचरा डालने के स्थान) में अनियंत्रित भूमि निपटान का चलन है, जो सैनिटरी लैंडफिल (पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना भूमि पर कचरे का निपटान करने की एक विधि) की तुलना में 10 से 1 के अनुपात में अधिक है।
  • अपशिष्ट उत्पादन और संग्रहण दर: भारत की आधिकारिक अपशिष्ट उत्पादन दर 0.12 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है, जिसे कम आंका जा सकता है, जबकि अपशिष्ट संग्रहण संभावित रूप से अधिक आंका गया है। अध्ययन में 81% के अधिक सटीक अपशिष्ट संग्रहण औसत को इंगित किया गया है।
  • प्लास्टिक कचरा जलाना: भारत में हर साल लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा खुलेआम जला दिया जाता है।

निष्कर्ष

  • अध्ययन में मैक्रोप्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक सूची की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है ताकि नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सके और शोधकर्ताओं के लिए आधार रेखा स्थापित की जा सके। यह सूची संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि के लिए महत्वपूर्ण है, जो वर्ष के अंत तक एक बाध्यकारी समझौता बन सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने हेतु संधि को अंतिम रूप देना महत्वपूर्ण है और प्रभावी उत्सर्जन कटौती रणनीतियों के लिए मजबूत हितधारक सहायता की आवश्यकता है।

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