संदर्भ: 

हाल ही में, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ब्रजेन्द्र प्रसाद कटेकी की अध्यक्षता में रैट-होल खनन मुद्दे से संबंधित एक आयोग ने रैट-होल कोयला खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का धीमा पुनःस्थापन दर के बारे में चिंता व्यक्त की है।

रैट-होल खनन

  • यह खनन का एक आदिम और खतरनाक तरीका है, जिसमें संकीर्ण, क्षैतिज सुरंगें खोदना शामिल है जो एक व्यक्ति के रेंगने के लिए पर्याप्त होती हैं। ये सुरंगें चूहों द्वारा बनाए गए बिलों जैसी दिखती हैं, इसलिए इसे चूहा-बिल खनन (“rat-hole mining”) नाम दिया गया है।
  • श्रमिक, जिनमें प्रायः बच्चे होते हैं, इन सुरंगों में प्रवेश करते हैं और कुदालियां तथा फावड़े जैसे बुनियादी औजारों का उपयोग करके कोयला निकालते हैं।

प्रभाव

  • सुरक्षा संबंधी खतरे: ऐसी सुरंगें अत्यधिक अस्थिर होती हैं और इनके ढहने का खतरा रहता है, जिससे खनिक फंस सकते हैं और उनकी मौत हो सकती है।
  • पर्यावरण को नुकसान: इससे वनों की कटाई और मिट्टी का कटाव होना आम बात है। इससे जल स्रोत भी प्रदूषित हो सकते हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: कोयला धूल के कारण खनिकों को श्वसन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, उन्हें संकरी कामकाजी परिस्थितियों और दुर्घटनाओं के कारण चोट लगने का भी खतरा रहता है।

समिति का विवरण

  • राज्य में रैट-होल कोयला खनन द्वारा कोयले से संबंधित मामलों की देखरेख हेतु वर्ष 2022 में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा एक सदस्यीय पैनल [न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ब्रजेन्द्र प्रसाद कटेकी] नियुक्त किया गया था।
  • इस समिति को मेघालय सरकार को उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण [इन दोनों संस्थाओं ने अप्रैल 2014 में खतरनाक रैट-होल कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था] के निर्देशों का अनुपालन करने के लिए सलाह देने का कार्य सौंपा गया था।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • पर्यावरणीय क्षति: समिति ने पाया कि रैट-होल कोयला खनन से क्षतिग्रस्त पर्यावरण को बहाल करने में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है तथा उसने सुधारात्मक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
  • निधि का उपयोग: मेघालय पर्यावरण संरक्षण एवं पुनरुद्धार निधि (MEPRF) के अस्तित्व के बावजूद, समिति ने पुनरुद्धार गतिविधियों के लिए इसके उपयोग न किए जाने पर प्रकाश डाला। 
  • परित्यक्त गड्ढों को बंद करना: समिति ने पर्यावरणीय खतरों को कम करने के लिए राज्य में परित्यक्त (उपयोग में नहीं) गड्ढों को बंद करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • सामुदायिक प्रभाव: खदानों के आसपास रहने वाले समुदायों को बंद न किए गए गड्ढों से जारी अम्लीय खदान निकासी के कारण लगातार कष्ट झेलना पड़ रहा है, जो खनन गतिविधियों के मानवीय प्रभाव को उजागर करता है।

अनुशंसाएँ

  • ड्रोन सर्वेक्षण: समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के प्रतिबंध के बाद अवैध रूप से खनन किए गए कोयले की पहचान और आंकलन हेतु कोयला ढुलाई पूरा होने के बाद तत्काल ड्रोन सर्वेक्षण शुरू करने की सिफारिश की।
  • कानूनी कार्रवाई: इसने जवाबदेही सुनिश्चित करने और भविष्य में उल्लंघन को रोकने हेतु खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों के तहत अवैध रूप से खनन किए गए कोयले को जब्त करने की सलाह दी।

प्रचलित कार्रवाई

  • सामुदायिक सहभागिता: चिंताओं को दूर करने और सुधार प्रयासों के लिए जानकारी एकत्र करने हेतु प्रभावित समुदायों और हितधारकों के साथ निरंतर सहभागिता।

• विनियामक अनुपालन: पर्यावरण को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए कोयला खनन गतिविधियों के संबंध में उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों का निरंतर अनुपालन सुनिश्चित करना।

  • हालाँकि, कुछ समुदायों में सख्त प्रवर्तन की कमी और आर्थिक हताशा के कारण यह प्रथा जारी है।

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