संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन|
संदर्भ:
व्यापार सुगमता और विश्वास-आधारित शासन के सिद्धांतों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के मद्देनजर पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय ने हाल ही में पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 अधिसूचित किए।
अन्य संबंधित जानकारी
- ये नियम पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत जारी किए गए हैं।
- इन नियमों का उद्देश्य पर्यावरण को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं, गतिविधियों और प्रक्रियाओं की स्वतंत्र लेखा परीक्षा (ऑडिट) को संस्थागत बनाना है।
- नए नियमों में “पर्यावरण लेखा परीक्षकों” के एक नए, स्वतंत्र वर्ग के गठन का प्रावधान है, जो पर्यावरणीय कानूनों के अनुपालन के लिए परियोजनाओं के निरीक्षण और सत्यापन में मौजूदा एजेंसियों के पूरक के तौर पर कार्य करेगा।
नए नियम की मुख्य विशेषताएं
पर्यावरण लेखा परीक्षा नामित एजेंसी (EADA) की स्थापना: यह लेखा परीक्षकों को प्रमाणित करने, सार्वजनिक रजिस्ट्री बनाए रखने, कार्य-निष्पादन की निगरानी करने और क्षमता निर्माण हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए ज़िम्मेदार होगी।
पंजीकरण की वैधता: प्रमाणित व्यक्ति पर्यावरण लेखा परीक्षा नामित एजेंसी (EADA) में पंजीकृत होंगे और अपनी तकनीकी क्षमता, योग्यता और स्वच्छ ट्रैक रिकॉर्ड का प्रमाण प्रस्तुत करेंगे। पंजीकरण पाँच वर्षों के लिए वैध होगा और समीक्षा के बाद इसे नवीनीकृत (renewed) किया जा सकता है।
दो-स्तरीय प्रणाली: ये नियम एक समर्पित निरीक्षण एजेंसी के साथ दो-स्तरीय लेखा परीक्षक प्रणाली का सृजन करते हैं, जिसका उद्देश्य सरकार के मौजूदा निगरानी ढांचे को प्रतिस्थापित करना नहीं, बल्कि उसे आगे बढ़ाना है।
- स्तर-1: इसमें केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड , राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों जैसी एजेंसियों द्वारा अपनाई गई मौजूदा सरकारी नियामक-आधारित समीक्षा शामिल है।
- स्तर-2: इसमें पर्यावरण लेखा परीक्षक-आधारित तंत्र शामिल है।
प्रमाणन के लिए दो चरण:
- अनुभवी पेशेवरों को पूर्व शिक्षा की मान्यता (‘RPL’) के माध्यम से प्रमाणित किया जाएगा।
- नए प्रवेशकों को राष्ट्रीय प्रमाणन परीक्षा (‘NCE’) उत्तीर्ण करनी होगी।
पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षक (REAd):
- लेखा-परीक्षण केवल पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षकों द्वारा ही किया जाएगा।
- विशिष्ट परियोजना संस्थाओं को पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षक का आवंटन यादृच्छिक आवंटन पद्धति के आधार पर किया जाएगा।
- पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षक अनुपालन जाँच, नमूनाकरण, विश्लेषण, क्षतिपूर्ति गणना और ग्रीन क्रेडिट नियमों, अपशिष्ट प्रबंधन और अन्य पर्यावरणीय कानूनों के अंतर्गत लेखा-परीक्षण कार्य की देखरेख करेंगे।
- पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षक, प्रधान पक्ष (पीपी) द्वारा किया जाने वाले लेखा-परीक्षण स्वयं भी कर सकते हैं, जिसमें स्व-अनुपालन रिपोर्ट का सत्यापन भी शामिल है।
निरीक्षण तंत्र: नियमों में एक संचालन समिति के गठन का प्रावधान है जिसका नेतृत्व अतिरिक्त सचिव करेंगे, और जो कार्य की प्रगति पर नज़र रखेगी, अद्यतन सुझाव देगी और लेखा परीक्षा प्रणाली को नई चुनौतियों के लिए तैयार करेगी।
नए नियमों का महत्त्व
- विनियमन में अंतराल को पाटना: ये नियम संसाधन और जनशक्ति की कमी का सामना कर रहे मौजूदा नियामक निकायों के काम को सरल बनाते हैं, और इस प्रकार पर्यावरण अनुपालन प्रवर्तन सक्षम होता हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाते हैं: हितधारकों के बीच विश्वसनीयता और विश्वास बनाए रखने के लिए लिए स्पष्ट भूमिकाएँ, आचार संहिताएँ और स्वतंत्र ऑडिट की शुरुआत।
- सतत और जिम्मेदार प्रगति का समर्थन करता है: यह ढाँचा पर्यावरणीय प्रदर्शन को व्यापक लक्ष्यों जैसे कि ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) रेटिंग, ग्रीन क्रेडिट और स्थायी व्यावसायिक अभ्यासों से जोड़ता है, जिससे जिम्मेदार कॉर्पोरेट व्यवहार और सतत विकास को बढ़ावा मिलता है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी के बाद पर्यावरण संरक्षण और सुधार के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करने हेतु लागू किया गया था।
- यह केंद्र सरकार को प्रदूषण निवारण और क्षेत्र-विशिष्ट पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान हेतु प्राधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को उद्योगों को बंद करने या विनियमित करने तथा बिजली, पानी या अन्य सेवाओं की आपूर्ति रोकने या नियंत्रित करने का आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।