संदर्भ:
भारत के प्रधानमंत्री ने जनवरी 2025 में दिल्ली से कश्मीर तक पहली सीधी रेल सेवा शुरू होने की उम्मीद जताई।
अन्य संबंधित जानकारी
- ट्रेन 13 घंटे से भी कम समय में 800 किमी की दूरी तय करेगी।
- 272 किलोमीटर लंबी उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (USBRL) परियोजना के रियासी और कटरा के बीच 17 किलोमीटर लंबे हिस्से का उद्घाटन जनवरी 2025 में होने की उम्मीद है।
- जुलाई 2024 तक, USBRL परियोजना का 255 किमी कार्य पूरा हो चुका है और शेष 17 किमी पर काम चल रहा है।
- USBRL परियोजना के इस अंतिम चरण में 62 किलोमीटर लंबा ट्रैक प्रस्तावित था, जिसमें से 45 किमी पूरा हो चुका है, जो कटरा और संगलदान के बीच स्थित है।
- शेष 17 किमी (जिसमें रियासी और कटरा के बीच चार स्टेशन हैं) और T33 सुरंग का कार्य दिसंबर 2024 तक पूरा होकर परीक्षण हेतु तैयार होने की उम्मीद है।
- वर्तमान में, कश्मीर में एक सीमित रेलवे सेवा है, जिसमें जम्मू संभाग में संगलदान-बनिहाल और कश्मीर घाटी में श्रीनगर-बारामूला के बीच ट्रेनें चलती हैं।
- भारतीय रेलवे नेटवर्क जम्मू के उधमपुर और कटरा तक जुड़ा हुआ है, लेकिन वर्तमान में कोई भी सीधी ट्रेन जम्मू को कश्मीर घाटी से नहीं जोड़ती है।
USBRLपरियोजना
कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने के लिए 272 किलोमीटर लंबे रेल लिंक वाली USBRL परियोजना को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने वर्ष 1995 में 2,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मंजूरी दी थी।
वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किए जाने के बाद इसके निर्माण कार्य में तेजी आयी।
काजीगुंड-बारामूला खंड के बीच 118 किलोमीटर का पहले चरण को अक्टूबर 2009 में चालू किया गया था, जिसके बाद जून 2013 में 18 किलोमीटर के बनिहाल-काजीगुंड को चालू किया गया था। उधमपुर और कटरा के बीच 25 किलोमीटर लंबे खंड का उद्घाटन जुलाई 2014 में किया गया था।
- चिनाब नदी पर 359 मीटर (1,178 फीट) की ऊंचाई पर बना विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज भी कटरा से USBRL के बनिहाल खंड तक महत्वपूर्ण संपर्क बनाता है। ऊर्ध्वाधर भार को बनाए रखने के लिए किसी भी आर्च ब्रिज को ऊपर की ओर उत्तल घुमावदार मेहराब के रूप में आकार दिया जाता है।
परियोजना का महत्व
- आर्थिक बढ़ावा: यह परियोजना कश्मीरी उत्पादों, जैसे- सेब, सूखे मेवे, पश्मीना शॉल और हस्तशिल्प के राष्ट्रीय बाजारों में कुशल और लागत प्रभावी परिवहन की सुविधा प्रदान करती है, जिससे व्यापार और स्थानीय आय में वृद्धि होती है।
- परिवहन लागत में कमी: यह घाटी में दैनिक उपयोग की वस्तुओं के आयात की लागत को कम करती है, उपभोक्ताओं को लाभान्वित और सामर्थ्य में सुधार करती है।
- बेहतर सम्पर्क सुविधा: यह जम्मू एवं कश्मीर और शेष भारत के बीच के अंतराल को पाटती है। पर्यटन को प्रोत्साहन तथा सामाजिक-आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देती है।
- सभी मौसमों में पहुँच सुविधा: यह सड़क यात्रा को बाधित करने वाली भीषण सर्दियों और भूस्खलन से उत्पन्न चुनौतियों को नियंत्रित करते हुए, वर्ष भर विश्वसनीय परिवहन सुनिश्चित करती है।