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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ:

हाल ही में वैश्विक जलवायु और स्वास्थ्य गठबंधन (GCHA) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि जीवाश्म ईंधन वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल का चालक हैं, जिससे जीवन के हर स्तर पर लोगों को बड़े पैमाने पर और निरंतर नुकसान हो रहा है।

अध्ययन के बारे में

  • यह “क्रैडल टू ग्रेव: जीवाश्म ईंधन का स्वास्थ्य पर प्रभाव और न्यायोचित परिवर्तन की अनिवार्यता” नामक शीर्षक की रिपोर्ट का दूसरा संस्करण है, जिसमें पाया गया है कि कोयला, तेल और गैस, निष्कर्षण से लेकर दहन के चरण तक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं, तथा कार्बन उत्सर्जन के अलावा स्थायी बीमारी, प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति का भी कारण बनते हैं।
  • केस स्टडी में नाइजीरिया में तेल निष्कर्षण, अमेरिका में औद्योगिक दुर्घटनाएं, मलेशिया में कोयला रिसाव, मैक्सिको में गैस विस्फोट, तथा फिलीपींस और भारत के पूर्वी तट पर टाइफून-कोयला संयंत्र के प्रभावों को सम्मिलित किया गया हैं। यह रिपोर्ट दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया सहित जीवाश्म ईंधन उद्योगों के कारण वैश्विक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को दर्शाती हैं।
  • रिपोर्ट में जीवाश्म ईंधन के सम्पूर्ण जीवनचक्र का मानचित्रण किया गया है, तथा जीवाश्म ईंधन के दहन से बहुत पहले और बाद में पारिस्थितिकी तंत्र, अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों पर पड़ने वाले इसके अनदेखे प्रभावों को उजागर किया गया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • जीवाश्म ईंधन जीवन के प्रत्येक चरण में स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है: जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण के प्रत्येक चरण से लेकर प्रसंस्करण, परिवहन, दहन और उपयोग के बाद के अपशिष्ट भी मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • गर्भ से वृद्धावस्था तक: जीवाश्म ईंधन के प्रभाव कम वज़न वाले बच्चों के जन्म, जन्मजात विकृतियों, अस्थमा, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकारों, हृदय रोग और अकाल मृत्यु से जुड़े होते हैं। बच्चे और वृद्धजन इसके प्रति अति संवेदनशील होते हैं।
  • स्थायी और प्रणालीगत प्रदूषण: भारी धातुएं, बेंजीन और पार्टिकुलेट मैटर दशकों तक मिट्टी, पानी और खाद्य श्रृंखलाओं में मौजूद रहते हैं, जिससे भावी पीढ़ियों के लिए खतरा बना रहता है।
  • असमान बोझ: हाशियाई समूह, मूल निवासी, अल्पसंख्यक, कम आय वाली आबादी असमान रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा सुविधाओं की कमी होती हैं।
  • सामाजिक विघटन: जीवाश्म ईंधन के हानिकारक प्रभावों से समुदाय विस्थापित होते हैं, जिससे लोगों की आजीविका के साधन समाप्त हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक असमानता बढ़ती है, मानसिक स्वास्थ्य संकट उभरते हैं और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता हैं।
  • नीतिगत खामियाँ: प्रमाण मौजूद होने के बावजूद, जलवायु और स्वास्थ्य संबंधी नीतियों में जीवाश्म ईंधन से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसानों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताएँ CO₂ और मीथेन पर केंद्रित होती हैं परन्तु कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकारों और सामाजिक विघटन का कारण बनने वाले प्रदूषकों की उनमें अनदेखी कर दी जाती है।

अध्ययन के प्रमुख सुझाव

  • सब्सिडी को स्वच्छ ऊर्जा की ओर पुनर्निर्देशित करना: जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करके और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने से लाखों लोगों की अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है। साथ ही इससे खरबों डॉलर का सार्वजनिक राजस्व भी प्राप्त हो सकता है।
  • न्यायसंगत और त्वरित संक्रमण सुनिश्चित करना: अध्ययन में जीवाश्म ईंधन से इतर एक तीव्र, निष्पक्ष बदलाव की बात कही गई है, जिसमें नए अन्वेषण को रोकना, सख्त प्रदूषण नियंत्रण लागू करना, विषाक्त स्थलों की सफाई करना और स्वास्थ्य लागतों के लिए प्रदूषकों को वित्तीय रूप से जिम्मेदार ठहराना शामिल है।
  • जीवाश्म ईंधन के प्रभाव को सीमित करना: रिपोर्ट में तंबाकू नियंत्रण की तरह जीवाश्म ईंधन के विज्ञापन और लॉबिंग पर अंकुश लगाने का आग्रह किया गया है, जिसमें इसके प्रायोजनों पर प्रतिबंध, CoP जैसे मंचों से बहिष्कार तथा भ्रामक सूचना से निपटने के लिए साक्ष्य-आधारित अभियान शामिल हैं।
  • जीवाश्म ईंधन वित्त की समाप्ति: वैश्विक पूंजी प्रवाह को नवीकरणीय ऊर्जा की ओर पुनर्निर्देशित करना; अवमूल्यित परिसंपत्तियों (Stranded Assets) की रोकथाम।
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में उदाहरण प्रस्तुत करना: स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को कार्बन-न्यूनतम बनाना, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना, और रोगियों की कहानियों के माध्यम से इनके प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करना आवश्यक है।

स्रोत:
The Hindu
Climate and Health Alliance

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