संबंधित पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1: जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे|
संदर्भ:
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक वतव्य में कहा कि भारत की दो शक्तियां इसकी जनसांख्यिकी और लोकतंत्र हैं, तथा यह देश विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला और सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
अन्य संबंधित जानकारी
- 11 जुलाई 1987 को विश्व की जनसंख्या पांच अरब तक पहुंच गई, जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1989 में विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत की।
- यह दिवस परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य तथा मानवाधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
- हालाँकि, आठ अरब से अधिक की वैश्विक जनसंख्या के साथ प्रगति जारी है, परंतु अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- भारत में, स्वास्थ्य सेवा और नवाचार में प्रगति हुई है, फिर भी ग्रामीण और हाशिए के क्षेत्रों में अभी भी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच, बुनियादी ढाँचे और निवारक देखभाल का अभाव है।
- विश्व जनसंख्या दिवस हमें स्मरण कराता है कि जनसंख्या वृद्धि सिर्फ़ एक संख्या नहीं है। इसके लिए कार्रवाई ज़रूरी है। स्वास्थ्य प्रणालियाँ समावेशी, टिकाऊ और तकनीक व समुदाय, दोनों पर आधारित होनी चाहिए।
- भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.6% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो विकसित देशों के 8-11% के औसत से काफी कम है, जिससे उत्पादकता और कल्याण तक इसकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- जनगणना 2027 में जनसंख्या गणना से आगे बढ़कर आयु, विकलांगता, स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और घरेलू जोखिम कारक जैसे कार्रवाई योग्य स्वास्थ्य डेटा को शामिल किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवा में जनगणना का महत्व
- स्वास्थ्य मानचित्रण के अवसर
- जनगणना को स्वास्थ्य-मानचित्रण के एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच, बीमारियों के बोझ, वृद्धावस्था के रुझानों और बुनियादी ढाँचे की कमियों का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है। भारत में दिए जा रहे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्रायः जनगणना-आधारित आँकड़ों पर ही निर्भर होते हैं।
- 1994 में, पोलियो में विश्वभर के 60% मामले भारत से थे। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम से 2009 और 2010 के बीच मामलों में 94% की कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2014 में भारत को “पोलियो-मुक्त” घोषित किया।
- इसी प्रकार, राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम ने जिलों को लक्षित करने के लिए जनगणना से जुड़े प्रचलन मानचित्रों का उपयोग किया, जिससे इसके फैलने की दर 0.69 (2014-15) से घटकर 0.57 (2024-25) हो गई।
- टीबी नियंत्रण कार्यक्रम ने निदान और दवा वितरण के मार्गदर्शन के लिए जनसांख्यिकीय डेटा का उपयोग किया, जिससे 2015 और 2023 के बीच घटनाओं में 17.7% और टीबी से होने वाली मौतों में 21.4% की गिरावट आई।
- कोविड-19 महामारी ने वास्तविक समय के, विस्तृत आंकड़ों के मूल्य को उजागर किया है – भारत ने मार्च 2023 तक 930 मिलियन से अधिक परीक्षण किए और 2.2 बिलियन वैक्सीन खुराकें दीं।
- आज, बढ़ते NCDs, मानसिक बीमारी और उभरते संक्रमण के लिए एक डेटा-संचालित, भविष्य के लिए तैयार स्वास्थ्य रणनीति अनिवार्य है।
- स्वास्थ्य देखभाल परिणामों के लिए अंतर्दृष्टि
- जनगणना जनसांख्यिकी और सामाजिक-आर्थिक पैटर्न पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करती है, जिससे अनुकूलित नीतियां बनाना संभव होता है।
- आने वाले दशक में, उत्तरदायी और दूरदर्शी स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों को तैयार करने के लिए अंतर्दृष्टि महत्वपूर्ण होगी।
- बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य जांच
- सटीक जनसंख्या मानचित्रण के साथ, सरकारें वंचित क्षेत्रों की पहचान कर सकती हैं और बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम आयोजित कर सकती हैं।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। निजी प्रयोगशालाएं और गैर-सरकारी संगठन मोबाइल डायग्नोस्टिक वैन का समर्थन कर सकते हैं, जबकि स्थानीय उद्योग सीएसआर पहल के माध्यम से आवधिक शिविरों को वित्तपोषित कर सकते हैं।
- स्कूलों और कार्यस्थलों को आयु-विशिष्ट जांच के लिए लक्षित किया जा सकता है, और जनगणना समूहों पर आधारित डिजिटल रजिस्ट्री समय पर अनुवर्ती (follow-up) कार्रवाई और निवारक देखभाल सुनिश्चित कर सकती है।
- स्वस्थ जीवनशैली के लिए सामुदायिक जागरूकता
- जनगणना के आँकड़े उच्च कुपोषण, एनीमिया या बच्चों के अल्प विकास वाले समूहों की पहचान करने में मदद करते हैं, जिससे लक्षित, समुदाय-आधारित प्रतिक्रियाएँ संभव होती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में, पंचायतें और स्वयं सहायता समूह किचन गार्डन, पोषक तत्वों से भरपूर फसलों को बढ़ावा देकर और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) तथा मध्याह्न भोजन निगरानी के माध्यम से भोजन वितरण में सुधार करके पोषण को बढ़ावा दे सकते हैं।
- जनगणना के आँकड़े शहरी निम्न-आय और प्रवासी क्षेत्रों में खराब आहार का खुलासा करते हैं। सामुदायिक प्रयास, जिनमें RWAs, गैर-सरकारी संगठन और शिक्षकों व बुजुर्ग महिलाओं जैसे स्थानीय प्रभावशाली लोग शामिल हैं, पोषण और खाद्य सुरक्षा को अधोगामी (top-down) चलाए जाने वाले अभियानों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से बढ़ावा दे सकते हैं।
- प्राथमिक स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करना
- 30,000 से ज़्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) के बावजूद, उत्तरी भारत और मध्य भारत के कई क्षेत्र अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं।
- जनगणना के आँकड़े स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को उजागर कर सकते हैं और आयुष्मान भारत के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (HWCs) में उन्नत करने में मदद कर सकते हैं।
- तमिलनाडु और केरल प्रभावी, आँकड़ों पर आधारित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) के कार्यान्वयन को दर्शाते हैं। शहरों में, स्थानीय ग्राम पंचायतों पर विश्वास होना ज़रूरी है; जनगणना से जुड़ी रजिस्ट्रियाँ उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में एकीकृत करने में मदद कर सकती हैं।
- वृद्ध होती जनसंख्या के लिए योजना बनाना
- भारत की वरिष्ठ नागरिकों की आबादी, जो 2022 में 149 मिलियन थी, 2036 तक 227 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है। यह कुल जनसंख्या का लगभग 15% है।
- ये आंकड़े स्वास्थ्य सेवा वितरण में एक बड़ा बदलाव लाने का संकेत देते है।
- जनगणना के आँकड़े अधिक वृद्धजन आबादी वाले क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं, जिससे मोबाइल वृद्धावस्था चिकित्सा इकाइयों, पुरानी बीमारियों की जाँच और दवाओं तक बेहतर पहुँच जैसे लक्षित उपाय संभव हो सकते हैं।
- टेलीमेडिसिन और घरेलू देखभाल ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच में सुधार ला सकती है। केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य वृद्ध-देखभाल नवाचार में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। जनगणना के आँकड़ों को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने से वृद्धों के लिए सम्मानजनक और समावेशी देखभाल सुनिश्चित होती है।
स्रोत : The Hindu https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/demography-and-democracy-moving-forward-with-better-health-outcomes/article69799276.ece