संदर्भ:

भारत ने15नवंबर को  चौथा वार्षिक जनजातीय गौरव दिवस मनाया

अन्य संबंधित जानकारी

  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदायों के योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीयगौरव दिवस मनाया जाता है।
  • यह दिवस आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती का भी प्रतीक रहा।
  • प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट का अनावरण किया।

बिरसा मुंडा

महत्वपूर्ण आंदोलन

मुंडावाद:

  • उत्पत्ति: 19वीं सदी के अंत में बिरसा मुंडा ने एक धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की जिसे “मुंडावाद” या “किसानवाद” के नाम से जाना जाता है।
  • उद्देश्य: मुंडा समुदाय को उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट करना तथा  पारंपरिक मुंडा रीति-रिवाजों और मान्यताओं को पुनर्जीवित करना।
  • शिक्षाएँ: बिरसा मुंडा ने आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय और उत्पीड़न के प्रतिरोध पर बल  दिया।
  • उपदेश: उन्होंने मुंडा लोगों से अपने पारंपरिक मूल्यों को आत्मसात करने  तथा ब्रिटिश उपनिवेशवाद और मिशनरियों के प्रभाव को अस्वीकार करने का आग्रह किया।
  • महान विद्रोह  आंदोलन (उलगुलान):
  • क्षेत्र: बिरसा का आंदोलन, जिसे ‘उलगुलान’ या महान विद्रोह भी कहा जाता है, बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) के छोटानागपुर क्षेत्र में शुरू हुआ।
  • लक्ष्य: इसने मुंडा और उरांव जनजातीय समुदायों को जबरन श्रम, मिशनरी गतिविधियों और औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संगठित किया।

बिरसा मुंडा विद्रोह का प्रभाव:

  • वर्ष 1908 में पारित ‘छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम’ में संशोधन करना, जिसमें निम्न शामिल थे:
  • जनजातीय भूमि को गैर-जनजातीय व्यक्तियों को हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • भूमि, जल और वन पर जनजातीय समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी गई।
  • “मुंडारी खुंटकट्टीदार” कार्यकाल की शुरुआत की गई, जिसमें मूल मुंडा निवासियों के पैतृक भूमि पर अधिकारों को मान्यता दी गई।
  • बिरसा मुंडा  आंदोलन आदिवासी समुदाय के न्याय और सांस्कृतिक संरक्षण पर बल  देता है।

अभ्यास ‘सी विजिल-24’

संदर्भ: भारतीय नौसेना ‘अखिल भारतीय’ तटीय रक्षा अभ्यास ‘सी विजिल-24’ के चौथे संस्करण का आयोजन कर रही है।

अभ्यास ‘सी विजिल’
  • ‘सी विजिल’ शब्द का अर्थ तटीय सुरक्षा तंत्र को सक्रिय करना और पूरे भारत में समग्र तटीय रक्षा तंत्र का  आकलन करना है।
  • 26/11 के मुंबई हमलों के बाद समुद्री सुरक्षा को मान्य करने और बढ़ाने के लिए वर्ष 2018 में इसकी संकल्पना की गई थी।
  • इस वर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के अधिकारी भी पहली बार भारतीय नौसेना के नेतृत्व वाली सीडीएसआरई टीमों का हिस्सा होंगे, साथ ही राज्य समुद्री पुलिस, तटरक्षक बल, सीमा शुल्क, मत्स्य पालन आदि के कार्मिक भी इसमें शामिल होंगे।      
  • यह भारतीय नौसेना द्वारा भारतीय तटरक्षक बल के सहयोग से समुद्री सुरक्षा के बारे में तटीय समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित किया जाने वाला द्विवार्षिक अभ्यास है।
  • लक्षित  क्षेत्र: तटीय परिसंपत्तियों (बंदरगाह, तेल रिग, सिंगल प्वाइंट मूरिंग, केबल लैंडिंग प्वाइंट) और महत्वपूर्ण तटीय बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को मजबूत करना।

महत्व:

  • यह भारत की समुद्री रक्षा क्षमताओं का समग्र मूल्यांकन  करता है।
  • यह समुद्री सुरक्षा एजेंसियों की वर्तमान क्षमता  और कमजोरियों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह भारतीय नौसेना के द्विवार्षिक थियेटर लेवल रेडिनेस ऑपरेशनल एक्सरसाइज (TROPEX) के प्रणेता के रूप में कार्य करता है। 

स्वास्तिक(SVASTIK)

संदर्भ: हाल ही में, CSIR-NIScPR  ने पारंपरिक ज्ञान के संचार और प्रसार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ( CDTK-2024) में SVASTIK पहल की शुरुआत की है। ।

स्वास्ति के बारें में :
  • वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित पारंपरिक ज्ञान (Scientifically Validated Traditional KnowledgeSVASTIK) पहल का समन्वयन CSIR-NIScPR  द्वारा किया गया।
  • यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य उचित परंपराओं के पालन को संरक्षित करना और बढ़ावा देना है।
  • इसका उद्देश्य परंपराओं को मान्य करने  के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना तथा भारत के पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं में जनता का विश्वास बढ़ाना है।
  • SVASTIK  ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान पर वैज्ञानिक रूप से मान्य सामग्री का दस्तावेजीकरण और प्रसार करने के लिए अनुसंधान संगठनों, उच्च शिक्षा संस्थानों, विशेषज्ञों और गैर सरकारी संगठनों को एक साथ लाया है।
  • इस ज्ञान को समाज तक प्रभावी ढंग से पहुंचाने के लिए यह पहल शुरू की गई।
  • CSIR-NIScPR  ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से 17 भारतीय भाषाओं में आकर्षक SVASTIK  कहानियां साझा की हैं। इसके अलावा, दो SVASTIK  प्रकाशन पारंपरिक ज्ञान के  प्रमाणित विवरण प्रदान करते हैं तथा युवा छात्रों कोसांस्कृतिक विरासत के ढांचे के भीतर विज्ञान का अन्वेषण करने हेतु प्रेरित करते हैं।

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