संदर्भ: 

अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों के मामलों से जुड़ा FliRT (फिलिर्ट) नाम का एक नया कोविड-19 वैरिएंट (variants) का एक समूह सामने आया है।

FLiRT के बारे में:

  • कोविड-19 महामारी ने फ्लर्ट वैरिएंट (KP.2 और KP1.1) [जो ओमिक्रॉन JN.1 वेरिएंट के उपवर्ग हैं] के उद्भव के साथ एक नया मोड़ ले लिया है।
  • कोविड वैरिएंट के इन नए वर्ग को उनके तकनीकी नामकरण के कारण FLiRT के रूप में जाना जाता है (F को स्थान 456 पर L और स्थान 346 पर R को T में बदल दिया गया है) और यह दो अलग-अलग उत्परिवर्तन को संदर्भित करता है, जो संयुक्त होने पर वायरस को अधिक आक्रामक स्वभाव वाले बनाते हैं। 
  • ये वैरिएंट COVID-19 के चक्रीय स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं, जो दर्शाता है कि यह बीमारी स्थानिक होने के बजाय चक्रीय हो सकती है।
  • इन वैरिएंट का नाम उनके विशिष्ट कंटक उत्परिवर्तन (specific spike mutations) के आधार पर रखा गया है तथा इन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और भारत जैसे कई देशों में मामलों में वृद्धि से जोड़ा गया है।
  • भारत के आईएनएसएसीओजी (INSACOG) संघ ने 6 मई, 2024 तक KP.2 के 238 मामले और KP1.1 के 30 मामले सामने आए हैं, जो देश के भीतर उनकी मौजूदगी का संकेत देते हैं।

FLiRT से संबंधित चिंताएं

  • इस किस्म (विशेष रूप से KP.2) के संबंध में प्रमुख चिंताओं में से एक यह है कि वे JN.1 की तुलना में अधिक आसानी से संचारित होते हैं।
  • अध्ययनों से पता चला है कि KP.2, पूर्व में JN.1 संक्रमण से प्राप्त प्रतिरक्षा के साथ-साथ नवीनतम टीकों से भी बच निकलने में सक्षम हो सकता है।
  • यह निरंतर जारी जीनोमिक निगरानी के महत्व को रेखांकित करता है, ताकि हम नए वैरिएंट के विकास पर नज़र रख सकें और उन्हें लक्षित करने हेतु संभावित रूप से टीकों को अद्यतन कर सकें।

भारत पर प्रभाव 

  • कई अन्य देशों की तरह भारत में भी अप्रैल 2024 से कोविड-19 मामलों में वृद्धि देखी गई है।
  • हालांकि इस वृद्धि में फ्लर्ट किस्मों का सटीक योगदान अभी भी अस्पष्ट है, लेकिन उनकी उपस्थिति अधिक सतर्कता की जरूरत पैदा करती है।
  • यह वायरस गर्मियों में सामान्य सर्दी, एलर्जी और राइनोवायरस सहित श्वसन संबंधी बीमारियों को अधिक संभावित बनाता है, इसलिए इससे निपटने हेतु अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • नए शोध में दीर्घकालिक कोविड के सूक्ष्म लेकिन लगातार बने रहने वाले स्वास्थ्य प्रभावों (जैसे- थकावट, भटकाव और मस्तिष्क में कोहरापन) पर भी प्रकाश डाला गया है।
  • नवीनतम SARS-CoV-2 टीकों के साथ टीकाकरण अभी भी कोविड-19 से गंभीर बीमारी को रोकने के लिए सबसे प्रभावी उपाय माना जाता है, चाहे परिसंचारी किस्म कोई भी हो।

आगे की राह

  • यह निरंतर जारी जीनोमिक निगरानी के महत्व को रेखांकित करता है ताकि हम नए किस्म के विकास पर नज़र रख सकें और उन्हें लक्षित करने हेतु संभावित रूप से टीकों को अद्यतन कर सकें।
  • चूंकि इस वायरस के आवधिक रूप से पुनः प्रकट होने की आशंका है, इसलिए ध्यान इसके उन्मूलन से हटकर इसके प्रभावी प्रबंधन पर केंद्रित होना चाहिए।
  • इसमें नए वेरिएंट की निरंतर निगरानी, अद्यतन जानकारी के आधार पर निवारक उपायों को अपनाना और कमजोर समूहों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना शामिल है।

आईएनएसएसीओजी

भारतीय SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दिसंबर 2020 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित यह संघ SARS-CoV-2 वायरस की जीनोमिक अनुक्रमण के लिए एक बहु-एजेंसी, बहु-प्रयोगशाला नेटवर्क के रूप में कार्य करता है।

मूलभूत कार्य

  • जीनोम अनुक्रमण: आईएनएसएसीओजी (INSACOG) सम्पूर्ण भारत में 54 प्रयोगशालाओं (जो SARS-CoV-2 वायरस के नमूनों के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण में संलग्न हैं) के समूह की देखरेख करता है।
  • यह विशिष्ट उत्परिवर्तन की पहचान और उभरते किस्मों पर नज़र रखने की सुविधा देता है।
  • किस्म की निगरानी: अनुक्रम डेटा का विश्लेषण करके आईएनएसएसीओजी भारत में विभिन्न कोविड-19 किस्मों के प्रसार और विकास की निगरानी करता है।
  • यह जानकारी संचरण क्षमता, टीके की प्रभावशीलता और रोग की गंभीरता पर इन किस्मों के संभावित प्रभाव को समझने हेतु महत्वपूर्ण है।
  • डेटा साझाकरण और विश्लेषण: आईएनएसएसीओजी प्रयोगशालाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियों के बीच डेटा साझाकरण और विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता है। 
  • यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण राष्ट्रीय किस्म परिदृश्य की व्यापक समझ सुनिश्चित करता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य मार्गदर्शन: जीनोम अनुक्रमण से प्राप्त जानकारी के आधार पर, आईएनएसएसीओजी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को सूचना प्रदान करता है और उनमें दखल देता है।
  • इसमें लक्षित जाँच, रोकथाम उपाय और टीका रणनीतियों के लिए सिफारिशें शामिल हो सकती हैं।

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