संदर्भ: 

एक नवीनतम अध्ययन से पता चला  है कि चूहों पर एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग  श्लेष्मा अवरोध को नष्ट करता  है, जो सूजन संबंधी आंत्र रोग (Inflammatory Bowel Diseases (IBDका कारण बनता है।

अध्ययन के मुख्य अंश

  • साइंस एडवांसेज पत्रिका में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के संबंध में अध्ययन प्रकाशित हुआ है।
  • अध्ययन में पाया गया कि चूहों को तीन दिनों तक दिन में दो बार एंटीबायोटिक्स देना श्लेष्मा अवरोध (mucus barrier) की समेकता को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त था।
    श्लेष्मा अवरोध प्रतिरक्षा प्रणाली को आंत में मौजूद रोगाणुओं से अलग करता है।
  • जब श्लेष्मा अवरोध क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो यह सूक्ष्मजीवों को मेज़बान या शरीर के ऊतकों के निकट संपर्क में आने देता है, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सक्रिय हो जाती है और आंतों में सूजन होने लगती है। इसका टूटना सूजन आंत्र रोगों (IBDs) की पहचान है।
  • अध्ययन में पाया गया कि सभी चार एंटीबायोटिक्स एम्पीसिलीन, मेट्रोनिडाजोल, नियोमाइसिन और वैनकॉमाइसिन, श्लेष्मा अवरोध को तोड़ने में सक्षम थे, जिससे बृहदांत्र उपकला (colonic epithelium) पर बैक्टीरिया का अतिक्रमण रुक जाता था।
  • अध्ययन में पाया गया कि वैनकॉमाइसिन (जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवा) बृहदान्त्र में गॉब्लेट कोशिकाओं के श्लेष्मा स्राव को माइक्रोबायोटा-स्वतंत्र तरीके से बाधित कर सकती है।
    श्लेषमा अवरोध पर वैनकोमाइसिन के प्रभाव को माइक्रोबायोटा स्थानांतरित करके रोगाणु मुक्त चूहों में स्थानांतरित नहीं किया जा सका।
  • कुछ एंटीबायोटिक्स बृहदांत्र कोशिकाओं में एंडोप्लाज़मिक रेटिकुलम तनाव उत्पन्न करते हैं, जिससे श्लेषमा का उत्पादन कम हो जाता है।
    पहले यह पाया गया था कि टीयूडीसीए (tauroursodeoxycholic acid) उपचार कोलोनिक गॉब्लेट कोशिकाओं में एंडोप्लाज़मिक रेटिकुलम तनाव को कम करके श्लेषमा स्राव की दर को बढ़ा सकता है।
  • अध्ययन का निष्कर्ष है कि एंटीबायोटिक्स सीधे मेजबान कोशिकाओं पर कार्य करके बलगम अवरोध पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।

सूजन संबंधी आंत्र रोग 

  • यह एक ऐसा शब्द है जो पाचन तंत्र में ऊतकों की दीर्घकालिक (chronic) सूजन से संबंधित विकारों का वर्णन करता है।
  • यह रोग जठरांत्र (gastrointestinal-GI) पथ को नुकसान पहुंचाता है। जठरांत्र पथ भोजन के पाचन, पोषक तत्वों का अवशोषण करता है और अपशिष्ट को बाहर निकालता है। 
  • सूजन आंत्र रोग का सटीक कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है, यह ज्ञात है कि इसमें जीन, प्रतिरक्षा प्रणाली और पर्यावरणीय कारकों के बीच परस्पर क्रिया शामिल होती है।
  • सामान्य लक्षण: बुखार, भूख न लगना, वजन कम होना, थकान, रात को पसीना आना, सामान्य मासिक धर्म चक्र का न होना।

सूजन संबंधी आंत्र रोग के प्रकार :

अल्सरेटिव कोलाइटिस:

  • इसका वर्णन सर्वप्रथम वर्ष 1875 में दो अंग्रेज चिकित्सकों, विल्क्स और मोक्सन द्वारा किया गया था।
  • यह बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय तक सीमित होती है।
  • सूजन केवल आंत की परत की सबसे भीतरी परत में होती है।
  • यह आमतौर पर मलाशय और निचले बृहदान्त्र में शुरू होता है, लेकिन यह पूरे बृहदान्त्र को प्रभावित करने के लिए लगातार फैल भी सकता है।

क्रोहन रोग:

  • इसका वर्णन सर्वप्रथम वर्ष 1932 में तीन डॉक्टरों – बुरिल क्रोहन, लियोन गिंज़बर्ग और गॉर्डन डी. ओपेनहाइमर द्वारा किया गया था।
  • यह आपके पाचन तंत्र की परत की सूजन का गुण है, जो अक्सर पाचन तंत्र की गहरी परतों को प्रभावित कर सकती है। क्रोहन रोग सबसे अधिक छोटी आंत को प्रभावित करता है।
  • हालाँकि, यह बड़ी आंत और कभी-कभी ऊपरी जठरांत्र मार्ग को भी प्रभावित कर सकता है।

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