भारत की वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण ने हाल ही में संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। सर्वेक्षण के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:
वैश्विक आर्थिक परिदृश्य
- चल रहे भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक वित्तीय बाजारों में बढ़ती अस्थिरता के बावजूद, वैश्विक आर्थिक विकास, 2024 में काफी हद तक मध्यम रहा।
- 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.3% की वृद्धि हुई। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 2024 और 2025 के लिए क्रमशः 3.2% और 3.3% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।
- यद्यपि समग्र वैश्विक आर्थिक विकास स्थिर बना हुआ है, लेकिन 2024 की विभिन्न क्षेत्रों में विकास की दर भिन्न होगी।
- वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और कमजोर बाह्य मांग के कारण मंदी देखी गई। वहीं, सेवा क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया और इसने कई अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन दिया।
भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति
1. विकास अनुमान:
पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 (FY25) के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि 6.4% रहने का अनुमान है, जो दशकीय औसत वृद्धि के करीब है।
- वित्त वर्ष 2025 की पहली और दूसरी तिमाही में वास्तविक GDP वृद्धि क्रमशः 6.7% और 5.4% रही, जिससे वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर 2024) में वृद्धि दर 6.0% रही।
आपूर्ति पक्ष पर, वास्तविक सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में भी 6.4% की वृद्धि होने का अनुमान है।
2. क्षेत्रक विशिष्ट विकास :
वित्त वर्ष 2025 में कृषि क्षेत्र में 3.8% की वृद्धि होने का अनुमान है ।
वित्त वर्ष 2025 में औद्योगिक क्षेत्र में 6.2% की वृद्धि का अनुमान है, जिसमें निर्माण गतिविधियों और बिजली, गैस, जल आपूर्ति जैसी उपयोगिता सेवाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
वित्तीय, रियल एस्टेट, लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में स्वस्थ गतिविधियों के कारण सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर 7.2% रहने का अनुमान है ।
- कुल GVA में सेवा क्षेत्र का योगदान वित्त वर्ष 2014 में 50.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 55.3% हो गया है (प्रथम अग्रिम अनुमान)।
वित्त वर्ष 25 की पहली छमाही में कृषि, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में क्रमशः 3.5%, 6% और 7.1% की वृद्धि दर्ज की गई ।
3. पूंजीगत व्यय (कैपेक्स):
- पिछले चार वर्षों (वित्त वर्ष 21 से वित्त वर्ष 24) में सरकार के कुल व्यय में पूंजीगत व्यय का हिस्सा अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है।
- वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में, आम चुनावों के कारण यह मंद रहा, लेकिन चुनावों के बाद इसमें सुधार हुआ और जुलाई-नवंबर 2024 के दौरान 8.2% की वृद्धि दर्ज की गई।
4. मुद्रास्फीति:
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार पर खुदरा हेडलाइन मुद्रास्फीति, वित्त वर्ष 24 में 5.4% से घटकर अप्रैल – दिसंबर 2024 में 4.9% हो गई है।
- उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) के आधार पर खाद्य मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 24 में 7.5% से बढ़कर अप्रैल-दिसंबर 2024 में 8.4% हो गई है, जिसका मुख्य कारण सब्जियों और दालों जैसे कुछ खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि है।
- RBI और IMF का अनुमान है कि भारत की उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 26 तक धीरे-धीरे 4% के लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगी।
5. बाह्य क्षेत्र:
- भारत के मर्चेंडाइज निर्यात में, अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान वर्ष-दर-वर्ष (YoY) 1.6% की वृद्धि हुई। वहीं, मर्चेंडाइज आयात में 5.2% की वृद्धि हुई, जिसके कारण भारत का मर्चेंडाइज व्यापार घाटा बढ़ गया।
- हालाँकि, सेवा क्षेत्र के व्यापार अधिशेष ने समग्र व्यापार घाटे को संतुलित किया है।
- भारत के मजबूत सेवा निर्यात ने देश को 2023 में वैश्विक सेवा निर्यात में 4.3% की हिस्सेदारी के साथ सातवें स्थान पर पहुंचा दिया।
- सेवा व्यापार अधिशेष के साथ-साथ, विदेशों से प्राप्त रेमिटेंस ने निजी हस्तांतरण में स्वस्थ निवल प्रवाह बनाए रखा।
- इन दोनों कारकों के कारण वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही में भारत का चालू खाता घाटा (CAD) GDP के 1.2% पर सीमित रहा।
- वहीं, पूंजी खाता, मजबूत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह के कारण स्वस्थ बना हुआ है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में वर्ष-दर-वर्ष 17.9% की वृद्धि दर्ज की गई, जो अप्रैल-नवंबर वित्त वर्ष 2025 में 55.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- स्थायी पूंजी प्रवाह के परिणामस्वरूप, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2024 के अंत में 616.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर दिसंबर 2024 के अंत तक 640.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 महीने के आयात और देश के लगभग 90% बाह्य ऋण को कवर करने के लिए पर्याप्त है , जो बाहरी जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है।
6. वित्तीय क्षेत्र:
- बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र, घटती परिसंपत्ति हानि, मजबूत पूंजी भंडार और सुदृढ़ परिचालन प्रदर्शन के कारण स्थिर बना हुआ है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR), दिसंबर 2024 के अनुसार, बैंकिंग प्रणाली में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) घटकर सकल ऋण और अग्रिमों के 2.6% के स्तर पर पहुँच गई हैं, जो पिछले 12 वर्षों में सबसे न्यूनतम है।
- सितंबर 2024 तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) के लिए पूंजी-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) 16.7% पर बना हुआ है, जो निर्धारित मानक से काफी अधिक है।
7. सामाजिक क्षेत्र:
- वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2022 के बीच देश के कुल स्वास्थ्य व्यय में, सरकारी स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 29.0% से बढ़कर 48.0% हो गया है।
- इसी अवधि के दौरान, कुल स्वास्थ्य व्यय में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय का हिस्सा 62.6% से घटकर 39.4% हो गया।
- आय असमानता के माप के रूप में प्रयुक्त गिनी गुणांक, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में घटा है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2022-23 के 0.266 से घटकर 2023-24 में 0.237 हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2022-23 के 0.314 से घटकर 2023-24 में 0.284 पर आ गया।
8. रोजगार रुझान:
- 2023-24 वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए बेरोज़गारी दर 2017-18 में 6% से घटकर 2023-24 में 3.2% पर पहुँच गई है।
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) और श्रमिक-जनसंख्या अनुपात (WPR) में भी वृद्धि हुई है।
- भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 26%, 10-24 वर्ष आयु वर्ग का है, जिससे यह दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक बन जाता है, और इसके पास एक विशिष्ट जनसांख्यिकीय अवसर है।
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के तहत शुद्ध वेतनभोगी पंजीकरण (पेरोल) पिछले छह वर्षों में दोगुना से अधिक हो गए हैं (वित्त वर्ष 2019 में 61 लाख से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 131 लाख), जो औपचारिक रोजगार में स्वस्थ वृद्धि का संकेत देता है।
9. AI युग में श्रम:
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत, जो एक सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था है और जिसके पास युवा और अनुकूलनीय कार्यबल है, के लिए AI का उपयोग आर्थिक विकास को समर्थन देने और श्रम बाजार के परिणामों को सुधारने की क्षमता रखता है।
- इसलिए, शिक्षा और कौशल विकास को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण होगा ताकि कार्यबल को AI-संचालित परिदृश्य में सफल होने के लिए आवश्यक क्षमताओं से लैस किया जा सके।
- आर्थिक सर्वेक्षण, श्रम क्षेत्र में AI-संचालित परिवर्तन के प्रतिकूल सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत के बीच सहयोग का आह्वान करता है।
दृष्टिकोण और आगे की राह
- 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्थिर रूप से बढ़ने की उम्मीद है, हालांकि क्षेत्रीय प्रवृत्तियाँ भिन्न होंगी और आगामी वर्षों में वृद्धि दर, प्रवृत्ति स्तर से थोड़ी कम रहेगी।
- विश्व भर में मुद्रास्फीति कम हो रही है, लेकिन मध्य पूर्व में तनाव और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे भू-राजनीतिक जोखिम, कीमतों पर नए सिरे से दबाव पैदा कर सकते हैं।
- घरेलू स्तर पर, उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय और बेहतर होती व्यावसायिक उम्मीदों से निवेश गतिविधि में तेजी आने की उम्मीद है।
- वित्त वर्ष 25 की चौथी तिमाही में, सब्जियों की कीमतों में मौसमी गिरावट और खरीफ फसल के आगमन के साथ खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने की उम्मीद है, जबकि रबी फसलों के बेहतर उत्पादन से वित्त वर्ष 26 की पहली छमाही में कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
- हालाँकि, प्रतिकूल मौसम की घटनाएं और वैश्विक कृषि वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि खाद्य मुद्रास्फीति के लिए संभावित जोखिम बने हुए हैं।
- यद्यपि घरेलू अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत बने हुए हैं, फिर भी विकास के कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं।
- इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, आर्थिक सर्वेक्षण वित्त वर्ष 2026 में वास्तविक GDP वृद्धि को 6.3% से 6.8% के बीच रहने की संभावना व्यक्त करता है।
आर्थिक सर्वेक्षण के बारे में
आर्थिक सर्वेक्षण क्या है?
- आर्थिक सर्वेक्षण एक वार्षिक दस्तावेज़ है जो पिछले वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का विश्लेषण करता है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का एक सामान्य अवलोकन प्रदान करता है, जिसमें इसके प्रदर्शन, वर्तमान स्थिति और विकास संभावनाओं को शामिल किया जाता है।
- यह अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर भी चर्चा करता है और इन चुनौतियों से निपटने के लिए नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है। यह जानकारी पिछले वर्ष के आर्थिक प्रदर्शन को समझने और भविष्य के लिए सूचित निर्णय लेने में उपयोगी होती है।
तैयारी और प्रस्तुति
- भारत का आर्थिक सर्वेक्षण, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) और उनकी टीम द्वारा, जो आर्थिक मामले विभाग (DEA) के आर्थिक विभाग के अंतर्गत काम करती है, तैयार किया जाता है। अंतिम मसौदे को वित्त मंत्री द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- इस वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन और उनकी टीम द्वारा तैयार किया गया है।
- वित्त मंत्री आमतौर पर केंद्रीय बजट से एक दिन पूर्व संसद के दोनों सदनों में आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हैं।