संदर्भ 

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों द्वारा ऋण पर अधिक ब्याज वसूलने वाले अनुचित प्रथाओं की पहचान की है।

विवरण 

  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय निगमों (एनबीएफसी) को उधारकर्ताओं अर्थात, ऋण लेने वाले लोगों पर लगाए गए अतिरिक्त ब्याज और अन्य शुल्क वापस करने हेतु एडवाइजरी जारी की है।
  • यह एडवाइजरी 31 मार्च, 2023 को समाप्त होने वाली अवधि के लिए बैंकों और एनबीएफसी की आरबीआई की ऑनसाइट जाँच के दौरान अनुचित प्रथाओं के सामने आने पर की गई कार्यवाही के रूप में आई है।

बैंकों द्वारा संचालित अनुचित प्रथा

  • स्वीकृति की तारीख से ब्याज वसूलना: कुछ बैंक वास्तविक संवितरण की तारीख के बजाय ऋण की स्वीकृति या ऋण समझौते के निष्पादन की तारीख से ब्याज वसूलते पाए गए।
  • वितरित चेकों पर ब्याज: ऐसे मामलों में जहाँ ऋण चेक द्वारा वितरित किए गए थे, ब्याज चेक जारी करने की तारीख से लिया गया था, न कि उस तारीख से जब ग्राहक द्वारा चेक को भुनाया गया था।
  • अनुचित तरीके से ब्याज की गणना: बैंकों को ऋण के बकाया रहने की अवधि के बजाय संवितरण या पुनर्भुगतान के मामलों में पूरे महीने के लिए ब्याज लेते पाया गया।
  • अग्रिम किश्तें वसूलना: बैंक ब्याज वसूलने के लिए सम्पूर्ण ऋण राशि पर विचार करते हुए एक या एक से अधिक किश्तों को अग्रिम रूप से वसूलते हैं।

आरबीआई का निर्देश

  • आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे चेक जारी करने के बजाय डिजिटल तरीके से ऋण वितरित करें।
  • आरबीआई ने बैंकों और एनबीएफसी को ऋण वितरण, ब्याज विनियोग और अन्य शुल्कों से संबंधित अपनी प्रथाओं की समीक्षा करने का निर्देश दिया।
  • सिस्टम-स्तरीय परिवर्तनों सहित सुधारात्मक कार्यवाही के समाने आए समस्याओं का समाधान करने, निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य किया है।

ब्याज दर नीति पर आरबीआई का रुख  

  • वर्ष 2003 में जारी आरबीआई के उचित प्रथा संहिता दिशानिर्देश, ऋणदाताओं द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज में निष्पक्षता और पारदर्शिता पर जोर देते हैं।
  • आरबीआई ब्याज वसूलने की गैर-मानक प्रथाओं को प्रतिकूल मानता है, क्योंकि वे निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों का पालन नहीं करती हैं।

आरबीआई द्वारा की गई हालिया पहल  

• मुख्य तथ्य विवरण (KFS) को पेश करना: बैंकों को उधारकर्ताओं को सरल भाषा में केएफएस जारी करना चाहिए, जिसमें ब्याज दरों, ईएमआई और शुल्कों सहित ऋण के बारे में मानकीकृत जानकारी प्रदान की जानी चाहिए।

  • उधारकर्ताओं को केएफएस के माध्यम से ऋण प्रस्ताव की समझ को स्वीकार करना आवश्यक है।
  • यह सभी नए खुदरा और एमएसएमई ऋणों के लिए 1 अक्टूबर, 2024 से प्रभावी होगा।

ब्याज दर में बदलाव के संबंध में उधारकर्ता के अधिकार 

  • बैंकों को उधारकर्ताओं को ईएमआई और/या अवधि में समायोजन सहित उनके ऋण पर बेंचमार्क ब्याज दरों में बदलाव के प्रभाव के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित करना आवश्यक है।
  • उधारकर्ताओं को ब्याज दर में बदलाव के कारण ईएमआई या अवधि में किसी भी प्रकार की वृद्धि के बारे में तत्काल सूचित किया जाना चाहिए।
  • उधारकर्ताओं को संस्थान की नीति के अनुसार, एक निश्चित ब्याज दर पर स्विच करने का विकल्प भी प्रदान किया जाना चाहिए।

ब्याज दरों को विनियमित करने में आरबीआई की भूमिका

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भारत में ब्याज दरों को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

मौद्रिक नीति के निर्धारण की प्रक्रिया 

  • आरबीआई का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है। 
  • यह मौद्रिक नीति के साधनों के माध्यम से, मुख्य रूप से अल्पकालिक ब्याज दरों को प्रभावित करके इसे प्राप्त करता है।

मौद्रिक नीति के साधन 

  • रेपो दर: वह दर जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकाल के लिए मुद्रा उधार देता है।
  • रिवर्स रेपो दर: वह दर जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों से अल्पकाल के लिए मुद्रा उधार लेता है। 
  • ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO): आरबीआई चलनिधि को प्रभावित करने और अप्रत्यक्ष रूप से ब्याज दरों को प्रभावित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदता या बेचता है। 
  • आरक्षित नकदी निधि अनुपात (CRR): बैंक जमा का वह हिस्सा जिसे बैंकों को आरबीआई के पास आरक्षित चलनिधि के रूप में रखना चाहिए। 
  • सांविधिक चलनिधि अनुपात (SLR): बैंक जमा का वह हिस्सा जिसे बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना चाहिए।

बैंक ऋण दरों पर प्रभाव  

  • रेपो रेट में हुआ बदलाव बैंकों के लिए निधियों की लागत को प्रभावित करते हैं। 
  • बैंक आमतौर पर रेपो रेट के आधार पर अपनी ऋण दरों (प्राइम लेंडिंग रेट, बेस रेट, आदि) को समायोजित करते हैं। 
  • कम रेपो रेट बैंकों को कम दर पर ऋण देने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है। 
  • उच्च रेपो रेट ऋण लेने को हतोत्साहित करती हैं और मुद्रा आपूर्ति को कम करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करती हैं।

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