संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका के वन कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में रूपांतरित हो चुके हैं।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस बदलाव का अर्थ है कि तीनों प्रमुख वर्षावन क्षेत्र अर्थात अमेज़न, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका अब शुद्ध कार्बन उत्सर्जक बन गए हैं, जिससे वैश्विक तापन में और वृद्धि हो सकती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

- प्रभावित क्षेत्र: डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर और पश्चिम अफ्रीका के कुछ हिस्सों में स्थित उष्णकटिबंधीय आर्द्र चौड़ी पत्ती वाले वन,कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में हुए इस बदलाव से सबसे अधिक गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
- संक्रमण और बायोमास की हानि : अफ्रीका के वनों में 2010 से 2017 तक कार्बन में कमी आनी शुरू हो गई थी, जिसमें अनुमानित वार्षिक बायोमास हानि लगभग 106 बिलियन किलोग्राम थी—जो कि 106 मिलियन कारों के वजन के बराबर है।
- तत्काल आवश्यकता: ट्रॉपिकल फ़ॉरेस्ट फ़ॉरएवर फैसिलिटी (TFFF) जैसी पहलों का विस्तार और कार्यान्वयन करना।
बदलाव के कारण
- वनोन्मूलन और भूमि उपयोग में परिवर्तन: इसका मुख्य कारण कृषि विस्तार (जिसमें झूम खेती शामिल है), ईंधन की लकड़ी के लिए वनों की कटाई, और भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण होने वाला व्यापक वनोन्मूलन और वन क्षरण है।
- बुनियादी ढाँचा और खनन का प्रभाव : बुनियादी ढाँचे के विकास और खनन गतिविधियों ने वनस्पति के नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे यह बदलाव (कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में) तीव्र हो गया है।
- दावानल और बायोमास हानि: प्राकृतिक और मानव-जनित दोनों तरह की जंगल की आग ने बायोमास हानि को तीव्र कर दिया है और अफ्रीकी वनों से कार्बन उत्सर्जन को बढ़ा दिया है।
- वन गुणवत्ता का ह्रास: यह मुद्दा केवल पूर्ण वनोन्मूलन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वन गुणवत्ता के ह्रास तक भी फैला हुआ है, जिसमें सघन, कार्बन-समृद्ध वनस्पति के नुकसान से वनों की कार्बन अवशोषित करने की क्षमता कम हो गई है।
अध्ययन के निहितार्थ
- जलवायु शमन प्रयासों का क्षरण: अफ्रीका के जंगलों का शुद्ध कार्बन उत्सर्जक में बदलना जलवायु शमन प्रयासों को कमजोर करता है और वैश्विक उत्सर्जन-कटौती लक्ष्यों को प्राप्त करना और भी कठिन बना देता है।
- व्यापक वन क्षेत्र संरक्षण: यह बदलाव दर्शाता है कि केवल वन क्षेत्र की रक्षा करना अपर्याप्त है; दीर्घकालिक कार्बन भंडारण के लिए वन की गुणवत्ता बनाए रखना, क्षरण को रोकना, और सघन, कार्बन-समृद्ध वनस्पति को संरक्षित करना आवश्यक है।
- अन्य उष्णकटिबंधीय वनों के लिए चेतावनी): अन्य उष्णकटिबंधीय वनों में भी इसी तरह के रुझान बताते हैं कि मजबूत संरक्षण, पुनर्स्थापन और सतत भूमि-उपयोग उपायों के बिना वन-आधारित जलवायु रणनीतियाँ की प्रभावशीलता कम हो रही हैं।
आगे की राह
- वन संरक्षण ढाँचों को सशक्त बनाना: अफ्रीकी राष्ट्रों और वैश्विक साझेदारों को वनोन्मूलन तथा क्षरण के प्रभावों को कम करने के लिए अफ्रीकी वन फोरम (African Forest Forum) के SFMF जैसे ढाँचों के अनुरूप, सतत वन प्रबंधन और वैज्ञानिक निगरानी बढ़ानी चाहिए।
- वन पुनर्स्थापन और लचीलेपन को बढ़ावा देना: कार्बन पृथक्करण क्षमता को फिर से बनाने के लिए बड़े पैमाने पर वन पुनर्स्थापन और लैंडस्केप लचीलेपन को प्राथमिकता देना, जिसमें जंगल की आग पर नियंत्रण, क्षतिग्रस्त भूमि का पुनर्वास, और कृषि अतिक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए भूमि उपयोग प्रथाओं में सुधार शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना: COP30 जैसे मंचों पर निरंतर समन्वय की आवश्यकता है ताकि वित्त जुटाया जा सके, वनोन्मूलन की प्रतिबद्धताओं को पूरा किया जा सके, और वन निगरानी तथा शासन के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में सहायता की जा सके।
